चाँटे
(लघुकथा)
सामाजिक कार्यकर्त्ता बड़ी लगन से सबकी आवभगत कर रहे थे । सामाजिक संगोष्ठी में गरीब तबके के उत्थान एवं बालश्रम से जुड़े बच्चों के भविष्य , भूख , महंगाई की बातें प्रमुखता से कही जा रही थीं । इस राष्ट्रीय आयोजन में चल रहे कवि सम्मलेन में कवियों ने भी बच्चों पर खूब कवितायेँ पढ़ीं । अंत में सभी आगंतुकों के लिए सुरुचि भोज का आयोजन भी था ।
चुन्नू - मुन्नू दिन भर के भूखे थे , वे भी भोज - भीड़ में चुपके से पहुँच गये और डिस्पोजल थालियों में भोजन लेकर शीघ्रता से उदर पूर्ति कर ही रहे थे तभी आयोजक की निगाहें इन दो भूखे , दरिद्र चिथड़ों में लिपटे बालकों पर पड़ी । बस फिर क्या था , क्रोध के अंगार चुन्नू - मुन्नू की पीठ पर , कभी गाल पर तड़ातड़ बरसने लगे । चुन्नू - मुन्नू के हाथ का निवाला और थाली दूर जा गिरी । ढुलके हुए आंसू को पीकर दोनों बाहर निकल आये ।
ठंड जोरों पर थी । वही सामाजिक कार्यकर्त्ता आयोजक फुटपाथियों को कंबल बाँटने और फोटो खिंचाने निकले । चुन्नू - मुन्नू के साथ कंबल देते हुए आयोजक ने फोटो खिंचवाये । दूसरे दिन चुन्नू - मुन्नू की बड़ी बड़ी तस्वीर आयोजक के साथ अखबार में छपी । चुन्नू - मुन्नू को अखबार पड़ा मिल गया । वे अपनी फोटो चाँटा मारने वाले आयोजक के साथ देखकर मुस्कुराये । वे अखबार लेकर आयोजक की दुकान पर पहुँचे और उसे अपनी फोटो दिखाते हुए जोर से हँस पड़े । आयोजक को बीती घटना याद हो आई । उसे लगा जैसे उसके गाल पर चाँटे पड़ गये हों ।
-०-
डॉ. सुधा गुप्ता 'अमृता'
(राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित)
दुबे कालोनी , कटनी 483501 (म. प्र.)-०-
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस हो ,बालदिवस हो मजदूर दिवस या कोई भी दिवस, सामाजिक और राजनीतिक संस्थाऐं सिर्फ कुर्सी और नाम के लिए ही इनका इस्तमाल करती है. सच में आपकी लघुकथा सामाजिक व्यवस्था पर एक जोरदार तमाचा है
ReplyDelete