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Saturday, 4 April 2020

समझदारी में सूझ (कहानी) - अनामिका रोहिल्ला

समझदारी में सूझ
(कहानी)
पन्हेरा कलां नाम का एक गांव है।वहां पर सब लोग सुख शांति से अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। हर परेशानी का सामना एकजुट होकर करते हैं। वहां के सभी लोग मेहनत और कठोर परिश्रम को अपनी सफलता का राज बताते हैं। कुछ समय पहले की बात है वहां पर कोरोना वायरस महामारी ने दस्तक दी।
भोली: "अच्छु अच्छु" अरे सुनते हो। बुखार ,सरदर्द, जुखाम ने मुझे हिला कर रख दिया है। शरीर में कमजोरी आ गई। क्या करूं?? अरे सुनते हो क्या?
घीसू: तुम इतनी चिंता क्यों करती हो। दवा खा लो कुछ दिनों में ठीक हो जाओगी।
जैसे भोली बीमार हुई वैसे ही और लोग जो इसके संपर्क में थे वह भी बीमार हो गए ।यह बीमारी वाली बात गांव के सरपंच के पास पहुंची। सरपंच ने अपने एक कार्यकर्ता को फोन कियाऔर पूछना - चाहा कि यह हो क्या रहा है?सरपंच को लगा कि शहर के लोगों में ज्यादा समझ है इसलिए अपने शहर के कार्यकर्ता को भी फोन किया।

सरपंच (फोन लगाते है): हेलो!! कैसे हो?
कार्यकर्ता मोहन: हेलो सर!! मैं ठीक हूं। गांव का क्या हाल-चाल?
सरपंच: क्या बताऊं गांव में एक बीमारी आई है। वह तो महामारी की तरह फैल रही है। कुछ अता- पता नहीं। इसलिए तुम्हें फोन किया।
चर्चा समाप्त होने पर मोहन ने सरपंच को बताया कि यह कोरोना वायरस के लक्षण लग है।आप सब को यह सूचना दे, दीजिए कि वह अपने घर से बाहर ना निकले।
सरपंच ने बिल्कुल वैसा ही किया। लेकिन किसी भी गांव वाले को उन पर विश्वास ना था,और सरपंच की बात टाल दी। सरपंच ने मोहन को फोन लगाया और सब बताया। मोहन तुरंत गांव आ गया।गांव में प्रोजेक्टर का बंदोबस्त किया और कोरोना वायरस का एक अच्छा सा भाषण दिया। उसने हमारे प्रधानमंत्री जी का वीडियो भी दिखाया।मोहन की बात सुनकर गांव वाले यकीन करने लगे ,और सभी अपने घर में बंद हो गए । पूरा गांव एकदम सुनसान हो गया।
धीरे-धीरे कोरोना वायरस गांव से चला गया।सरपंच ने एक बार फिर मीटिंग बुलाई और बोले: हम सब ने अपनी जान बचाई तो गांव बचा । वैसे ही हमें मोहन जैसे लोगों का साथ देकर सबकी जान बचानी चाहिए। ताकि ताकि सब स्वस्थ रह सके।
सभी ने सरपंच का शुक्रिया अदा किया और तालियां बजाई सरपंच जी ने कहा "जान है तो जहान है"
-०-
पता:
अनामिका रोहिल्ला
दिल्ली 
-०-

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हम भारतवाशी तैयार है (कविता) - श्रीमती राखी सिंह


हम भारतवाशी तैयार है

(कविता)
कैसी यह विपदा आयी है
दुनिया कोरोना से घबराई है
दूजों के लिए नहीं पर
सबने खुद के लिए दूरी बनाई है

कतराना, नामिलना ना हाथमिलाना
सबने दुनिया से प्यार से दूरी बढ़ाई है
हां आपस में लड़ने वालों ने
पर मानवता अपनायी है
आज सूनी है रहे, सड़कें
आँखों में भय सी छायी है
मन ही मन डर डर के सोचे
यह नरभकक्षी महामारी क्यों आयी है

ना इलाज ना कोई दवा है
रस्ता एक मात्र है सफाई
खुद को करना घर में बंद है
करो खुद को लॉक आउटयही समझायी

हाथ धुला, सेनेटाइजर लगा है
ना हाथ मिलाये नियम ने जान है बचायी
पर रात के बाद सबेरा है
व दुःख के बाद ख़ुशी के पल है आयी

पूरा भारत तैयार एक साथ खड़ा हो
दुश्मन कोरोना की दवा बना है
बात अपने नेता के माना वो
14 अप्रेल तक घर जमे रहने की ठाना है
-०-
पता:
श्रीमती राखी सिंह
मुंबई (महाराष्ट्र)


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कुछ समझें और समझायें (कविता) -डॉ. कुमुद बाला मुखर्जी

कुछ समझें और समझायें
(कविता)
गली - गली में सन्नाटा और मरघट पे हुई चहल- पहल,
मानव - मानव में प्रेम नहीं अब कौन करे पहले पहल.

यही तो है दुर्भाग्य हम संकेत समझते ही नहीं
प्रकृति के नवप्रेम के हम संवेद समझते ही नहीं
त्राहि-त्राहि कर विश्व अपना झीना आँचल पसार रहा
धरती और व्योम के हम संदेश समझते ही नहीं
प्राकट्य में वायरस नया अब मानव को पीना है गरल
गली - गली में सन्नाटा और मरघट पे हुई चहल- पहल
मानव - मानव में प्रेम नहीं अब कौन करे पहले पहल

अवतारों के जीवन ने सिखलाया प्रेम है मधुबन
श्रद्धा औ सबूरी से सबने सजाये नंदन कानन
मनुष्यता पर मानवता का सुघनत्व है सबसे ज्यादा
सब जीवों के प्रेम से ही महकेगा नवविश्वागंन
गुदड़ी औ पंकिल से गुज़रकर दवा मिलेगी हमें अटल
गली - गली में सन्नाटा और मरघट पे हुई चहल- पहल
मानव - मानव में प्रेम नहीं अब कौन करे पहले पहल

दूर हुए हैं रिश्ते अपने हम उसे सुधारें दिल से
घर में समय बिताने का ये दिन मिला बड़ी मुश्किल से
बड़े जतन से कामयाबी हासिल होती जीवन में
बनो बच्चों संग बच्चे जैसे लहरें मिलें साहिल से
बनो जागरूक और प्रेरक उभरो जैसे नगपति धवल
गली - गली में सन्नाटा और मरघट पे हुई चहल- पहल
मानव - मानव में प्रेम नहीं अब कौन करे पहले पहल
-०-
पता:
डॉ. कुमुद बाला मुखर्जी
हैदराबाद (तेलंगाना)
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सब बंद है (कविता) -प्रकाश तातेड़

सब बंद है
(कविता)
हवाई जहाज, रेलवे, बसे सब बंद है
पूरी तरह चक्का जाम है ।
बाजार, मॉल, सिनेमा सब बंद है
चहल-पहल गायब है ।
स्कूल, कॉलेज, ऑफिस सब बंद है
तरक्की का पहिया रुका है।
सड़के, चौराहे, बगीचे सब बंद है
सब जगह विरानी छाई है।
मंदिर,मस्जिद, गिरजाघर सब बंद है
सर्वत्र शांति का साम्राज्य है।
संसद, विधानसभा, न्यायालय सब बंद है
सब ओर सन्नाटा पसरा है।
अखबार, कारखाने,खेती-बाड़ी सब बंद है खामोशी ने डेरा डाला है।
जीव -जंतु,पशु -पक्षी आजाद है
मगर आदमी पिंजरे में कैद है।
हाथ धोने, मास्क लगाने को पाबंद है।
यह वर्ष 2020 में मार्च के
चौथे सप्ताह का आंखों देखा हाल है।
विश्व का कोना-कोना कोरोना वायरस के
प्रचंड प्रकोप से पीड़ित है ।
लाखों लोग संक्रमित है,
जिंदगी मौत के बीच अटके हैं।
हजारों मौत के मुंह में समा चुके हैं।
देश, प्रदेश व शहर की सीमाएं लोक डाउन है
भय, आशंका,कर्फ्यू सा माहौल है।
जीवन थम सा गया है, मगर फिर भी
अस्पताल खुले हैं, दवाएं उपलब्ध है
दूध, सब्जी, किराने की सुविधा है
हर दिशा में पुलिस का पहरा है।
टीवी, मोबाइल, नेट चालू है
हवा, पानी, पेड़, पेट्रोल खुश है।
यह खट्टा-मीठा,विचित्र अनुभव
लेने को आदमी जिंदा है
परन्तु घोर आश्चर्य, वह
अपने किए पर तनिक नहीं शर्मिंदा है।
-०-
पता-
प्रकाश तातेड़
उदयपुर(राजस्थान)
-०-

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पापा मैं लिखता हूं (कविता) - रमाकांत श्रीवास

पापा मैं लिखता हूँ 
(कविता) 
बताना है मुझे
जो छुपा रखा है अब तक आप से
कैसे न बताऊं आपको,
सब कुछ तो पाया हैै आप से
ये रंग-रुप , ये कद-काठी
सब कुछ तो आप से आया है
महफिल में लोग कहते हैं
कि मैं अपने पापा जैसा दिखता हूं
कैसे न बताऊं अब पापा मैं लिखता हूं।
पापा मैं अब लिखता हूं।


मै किसी को बता नहीं पाता,
मैं हर खामोशी छुपा नहीं सकता
इन कागज के पन्नों में,
अपने दिल की बात उतारता हूं....
पापा मैं अब लिखता हूं।

सबसे लड़ता हूं,
कहना भी नहीं मानता हूं
मुझे दुनिया में किसी से मतलब नहीं,
लेकिन मैं आपको अच्छे से जानता हूं
पापा मैं अब लिखता हूं।

वो याद है ना पापा आपको,
वो स्कूटर में मुझे आप सामने बिठाते थे
एक्सीलेटर को हाथ में दे के,
ले चला, ऎसा बोलते थे
मै हूं ना तेरे पीछे ,
ऐसा बोल कर मेरे डर क़ो कैसे भगाते थे
याद है ना पापा आपको,
उन सब य़ादों को मैं संजोता हूं।
पापा मैं अब लिखता हूं।

मेरे हॉस्टल से आने की खबर सुनकर,
बार -बार सड़क की तरफ देखना
आते ही मम्मी को जोर से
चाय बनाने के लिए बोलना
याद है ना ..पापा आपको,
इस जिन्दगी की कहानी को जोड़ता हूं।
पापा मै अब लिखता हूं।

अपने दर्द को छुपाक़र , 
मेरे सपनों क़ो देखना
मैं खुश रहूंं ये सोच़कर, 
अपनी नींद को त्याग देना
ये त्याग और संघर्ष,
मैं आप से सीखता हूं।
पापा मै अब लिखता हूं।
पापा आपका दिल से करता हूं सम्मान,
बस थोड़ा-सा है आप में गुमान

पर मेरे पापा मेरे गुरुऱ हैं,
वो ही हैं मेरी आन, बान और शान
सिर झुकाता हूं मैं आपके चरणों में,
आपकी वजह से ही मैं आज खड़़ा हूं सीना तान।
-०-
पता
रमाकांत श्रीवास
हैदराबाद (तेलंगाना) 

-०-

***
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