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Saturday, 4 April 2020

पापा मैं लिखता हूं (कविता) - रमाकांत श्रीवास

पापा मैं लिखता हूँ 
(कविता) 
बताना है मुझे
जो छुपा रखा है अब तक आप से
कैसे न बताऊं आपको,
सब कुछ तो पाया हैै आप से
ये रंग-रुप , ये कद-काठी
सब कुछ तो आप से आया है
महफिल में लोग कहते हैं
कि मैं अपने पापा जैसा दिखता हूं
कैसे न बताऊं अब पापा मैं लिखता हूं।
पापा मैं अब लिखता हूं।


मै किसी को बता नहीं पाता,
मैं हर खामोशी छुपा नहीं सकता
इन कागज के पन्नों में,
अपने दिल की बात उतारता हूं....
पापा मैं अब लिखता हूं।

सबसे लड़ता हूं,
कहना भी नहीं मानता हूं
मुझे दुनिया में किसी से मतलब नहीं,
लेकिन मैं आपको अच्छे से जानता हूं
पापा मैं अब लिखता हूं।

वो याद है ना पापा आपको,
वो स्कूटर में मुझे आप सामने बिठाते थे
एक्सीलेटर को हाथ में दे के,
ले चला, ऎसा बोलते थे
मै हूं ना तेरे पीछे ,
ऐसा बोल कर मेरे डर क़ो कैसे भगाते थे
याद है ना पापा आपको,
उन सब य़ादों को मैं संजोता हूं।
पापा मैं अब लिखता हूं।

मेरे हॉस्टल से आने की खबर सुनकर,
बार -बार सड़क की तरफ देखना
आते ही मम्मी को जोर से
चाय बनाने के लिए बोलना
याद है ना ..पापा आपको,
इस जिन्दगी की कहानी को जोड़ता हूं।
पापा मै अब लिखता हूं।

अपने दर्द को छुपाक़र , 
मेरे सपनों क़ो देखना
मैं खुश रहूंं ये सोच़कर, 
अपनी नींद को त्याग देना
ये त्याग और संघर्ष,
मैं आप से सीखता हूं।
पापा मै अब लिखता हूं।
पापा आपका दिल से करता हूं सम्मान,
बस थोड़ा-सा है आप में गुमान

पर मेरे पापा मेरे गुरुऱ हैं,
वो ही हैं मेरी आन, बान और शान
सिर झुकाता हूं मैं आपके चरणों में,
आपकी वजह से ही मैं आज खड़़ा हूं सीना तान।
-०-
पता
रमाकांत श्रीवास
हैदराबाद (तेलंगाना) 

-०-

***
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