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Saturday, 4 April 2020

कुछ समझें और समझायें (कविता) -डॉ. कुमुद बाला मुखर्जी

कुछ समझें और समझायें
(कविता)
गली - गली में सन्नाटा और मरघट पे हुई चहल- पहल,
मानव - मानव में प्रेम नहीं अब कौन करे पहले पहल.

यही तो है दुर्भाग्य हम संकेत समझते ही नहीं
प्रकृति के नवप्रेम के हम संवेद समझते ही नहीं
त्राहि-त्राहि कर विश्व अपना झीना आँचल पसार रहा
धरती और व्योम के हम संदेश समझते ही नहीं
प्राकट्य में वायरस नया अब मानव को पीना है गरल
गली - गली में सन्नाटा और मरघट पे हुई चहल- पहल
मानव - मानव में प्रेम नहीं अब कौन करे पहले पहल

अवतारों के जीवन ने सिखलाया प्रेम है मधुबन
श्रद्धा औ सबूरी से सबने सजाये नंदन कानन
मनुष्यता पर मानवता का सुघनत्व है सबसे ज्यादा
सब जीवों के प्रेम से ही महकेगा नवविश्वागंन
गुदड़ी औ पंकिल से गुज़रकर दवा मिलेगी हमें अटल
गली - गली में सन्नाटा और मरघट पे हुई चहल- पहल
मानव - मानव में प्रेम नहीं अब कौन करे पहले पहल

दूर हुए हैं रिश्ते अपने हम उसे सुधारें दिल से
घर में समय बिताने का ये दिन मिला बड़ी मुश्किल से
बड़े जतन से कामयाबी हासिल होती जीवन में
बनो बच्चों संग बच्चे जैसे लहरें मिलें साहिल से
बनो जागरूक और प्रेरक उभरो जैसे नगपति धवल
गली - गली में सन्नाटा और मरघट पे हुई चहल- पहल
मानव - मानव में प्रेम नहीं अब कौन करे पहले पहल
-०-
पता:
डॉ. कुमुद बाला मुखर्जी
हैदराबाद (तेलंगाना)
-०-

***
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