पहले से आराम बहुत है
(कविता)जो भेजे हो दवा पेट की,
केवल दो दिन ही खाए हम,
पहले से आराम बहुत है.
खेत कट गये, सब गेहूँ के,
बोझ पड़े, खलिहान गँजा है,
दो हजार का, नोट दिए जो,
मुश्किल से वह, आज भँजा है,
आवारा पशु, फसल चर गये,
एक देह को काम बहुत है.
खेत पटाने, गई ‘पवितरी’,
‘रामबुझावन’ गाय चराने
छुटकी रूठ, गई ‘पडरौना’,
‘रूप’ गया ‘घरजनवा’ खाने,
पेड़ फलों से, लदे पड़े हैं,
आया लँगड़ा आम बहुत है.
बचा बकाया, ‘पटवारी’ का,
चुका दिया हूँ पाई-पाई,
सुन, इस फागुन में होनी है,
‘बसमतिया’ की, रुकी सगाई,
एक बार, आकर मिल जाता,
आता लेकिन, घाम बहुत है.
सिर में दर्द, बहुत रहता है,
सदा कहँरती, बुढ़िया आजी,
खाना-पीना, बंद हो गया,
खाती है कुछ, ताजा भाजी,
शहर दिखा दूँ, किसी वैद्य से,
डर जाता हूँ, जाम बहुत है.-०-
पता:
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ (उत्तरप्रदेश)
-०-