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Sunday, 6 September 2020

ख्वाहिशें (कविता) - सोनिया सैनी

ख्वाहिशें
(कविता)
ख्वाहिशों की उड़ान
हर कोई उड़ना तो चाहता है।

पर नहीं चुका पता
उसका मूल्य,
मूल्य तल्लीनता का,
मूल्य पागलपन का,
मूल्य लक्ष्य के प्रति समर्पण का।

फलस्वरूप ,
ख्वाहिशें अधूरी,
आत्मा अतृप्त,
मन गमगीन,
ऐसी स्थिति में पहुंच,
छोड़ देता है मनुज
ख्वाहिशें बुनना, सपने चुनना।

   पर क्यों?

छोड़ दी जाए ,ख्वाहिशें।
हो समर्पित लक्ष्य पर,
ध्यान साधो लक्ष्य पर,
तो पास ,बहुत पास
आ जाएगी ख्वाहिशें।
या यूं कहे ,मुकम्मल
हो जाएगी ख्वाहिशें।
-०-
पता:
सोनिया सैनी
जयपुर (राजस्थान)

-०-


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कोरोना वायरस (ग़ज़ल) - मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'

कोरोना वायरस
(ग़ज़ल)
कहाँ से आया कोरोना वायरस ।
तुमने तो छीना जीवन का रस ।।

खेल-पढाई - स्कूलें हो गई बन्द ।
जब से येआया कोरोना वायरस ।।

घर में हो गये सारे के सारे कैद ।
बच्चे - बूढ़ों को डराए वायरस ।।

टी वी-मोबाईल अब हमारे साथी ।
नानी - दादी के घर को गए तरस ।।

दोस्त-सखा सब मिलने को तरसे ।
बार - बार डराए कोरोना वायरस ।।

मन्दिर-मस्जिद पूजागृह हुए लॉक ।
गरीब - मजदूर हो गये सारे बेबस ।।

कब स्वछन्द होके हम खेलेंगे खेल ।
जहाँ से आए वहाँ जाओ वायरस ।।

ब्याव-शादी-मौत में भी लुक - छुप ।
कब तक हमें यूँ तड़पाएगा वायरस ।।

हमारी पढाई हो गई अब ऑनलाईन ।
हम कैसे पढेंगेअब थक चुके वायरस ।।
-०-
मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'
मोहल्ला कोहरियांन, बीकानेर

-०-

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कोरोना (कविता) - अजय कुमार व्दिवेदी

कोरोना 
(कविता)
उठते हैं प्रत्येक सुबह इश्वर का नाम लेकर हम।
हर कदम अपना बढ़ाते हैं उन्हें प्रणाम करतें हुए।

कोरोना से किसी व्यक्ति के प्राण न जाएँ।
आस-पास के लोगों को सावधान करते हुए।

सोचते हैं खुद भी बचें औरों को बचा लें।
भारतीय संस्कृति का इस्तेमाल करते हुए।

सम्पूर्ण विश्व में मचा रहा कोहराम कोरोना। 
इसे अपने देश से भगा दें नमस्कार करते हुए। 

कुछ लोग जो फैला रहे है भरम देश में। 
उनसे दुरीयां बना लें प्रभु का नाम जपते हुए। 

मौत लिखी है जबकि ''अजय'' तब ही आएगी। 
क्यूँ न कोरोना को हरा दें हम अपना काम करते हुए। 

अजय कुमार द्विवेदी ''अजय''
-०-
अजय कुमार व्दिवेदी
दिल्ली
-०-


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