ख्वाहिशों की उड़ान
हर कोई उड़ना तो चाहता है।
पर नहीं चुका पता
उसका मूल्य,
मूल्य तल्लीनता का,
मूल्य पागलपन का,
मूल्य लक्ष्य के प्रति समर्पण का।
फलस्वरूप ,
ख्वाहिशें अधूरी,
आत्मा अतृप्त,
मन गमगीन,
ऐसी स्थिति में पहुंच,
छोड़ देता है मनुज
ख्वाहिशें बुनना, सपने चुनना।
पर क्यों?
छोड़ दी जाए ,ख्वाहिशें।
हो समर्पित लक्ष्य पर,
ध्यान साधो लक्ष्य पर,
तो पास ,बहुत पास
आ जाएगी ख्वाहिशें।
या यूं कहे ,मुकम्मल
हो जाएगी ख्वाहिशें।
-०-
पता:सोनिया सैनी
जयपुर (राजस्थान)
-०-
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