★सच कहूँ, हाँ! एक पिता है वो★
(कविता)
प्यास बुझाता इक़ दरिया,
राहगीर की मंजिल का इक़ जरिया है वो,
मानो ना मानो इस जहाँ में इक़ खुदा है वो,
सच कहूँ..!! हाँ एक पिता है वो।।
एक चिन्ता जो उसे हर दम सताती है,
बयाँ ना भी करे ,आंखे बताती है।
अपने टुकड़े को हरदम महफूज रखता है वो,
बस इसी कशमकश खुदा से भी लड़ पड़ता है वो,
सच कहता हूँ यार ..!! हाँ एक पिता ही है वो।।
इक़ रिश्ता उनसे कुछ खास है,
अनोखी सी उनमे इक़ बात है,
शायद तुम्हे पता नही खुदा है वो,
या फिर सच कहूँ.!!
तो उस खुदा से भी बढ़कर एक पिता है वो।।
-०-
पता :
Jordaar ek no🙆🙆
ReplyDeleteSuperb...👌👌
ReplyDeleteJordaar bahi
ReplyDeleteShaandar bhai 😍
ReplyDeleteपिता की मासूमियत के राज़ वो ख़ुदा ही खोल पाएगा,
ReplyDeleteहम उस सक्सियत की बात कर रहे है,
जो बेशुमार ख़ुशी हो चाहे, दिल चीरने सा गम,
कभी बोल ही नहीं पाएगा....
अमन की क्या ख़ूब लिखा है आपने...
Khatrnak
ReplyDeleteJordaar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर है कविता ! आप को बहुत बहुत बधाई है आदउणीय।
ReplyDeleteSuper se bhi uper...👌👌👍
ReplyDelete👌👌👌
ReplyDeleteBahut bdiya janaab...👍
ReplyDeletebeautiful line bro...
ReplyDeleteEk number 👌
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteबहुत शानदार कविता है अमन जी।।।♥️♥️♥️��
ReplyDeleteVery Nice Aman...Keep It Up������
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteNice...
ReplyDeleteMst...
ReplyDeleteBut khub...
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