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Wednesday 30 September 2020

है हिंदी मेरी भाषा (कविता) - अजय कुमार व्दिवेदी

है हिंदी मेरी भाषा
(कविता)
है हिन्दी मेरी भाषा। 
मेरा अंग्रेजी से बैर नहीं, है हिन्दी मेरी भाषा।
मात पिता भाई बहन, बन्धु सा अपना नाता।
हिन्दी है मेरे रग रग में, मैं हिन्दूस्तां का वाशी हूँ।
हूँ पढ़ता लिखता हिन्दी में, हिन्दी ही मन को भाता।

मेरा अंग्रेजी से बैर नहीं, है हिन्दी मेरी भाषा।
मात पिता भाई बहन, बन्धु सा अपना नाता।

माँ बाबूजी कहना और कहना दादी नानी। 
होते ही रात वो सुनना हिन्दी में कहानी।
दादी के गोद में सोना माँ के आँचल का बिछौना। 
सिखाता हमको अ अनार और ज्ञ से भईया ज्ञानी। 
रिश्तों के बंधन में बंधना हिन्दी से है आता। 

मात पिता भाई बहन, बन्धु सा अपना नाता।
मेरा अंग्रेजी से बैर नहीं, है हिन्दी मेरी भाषा।

आती है मुझको अंग्रेजी पर हिन्दी में बतियाता हूँ।
सुनकर अपनों के मुख से अंग्रेजी मैं डर जाता हूँ।
नहीं समझ में आता सब हिन्दी से कतराते क्यूँ?
देख के हिन्दी की हालत मैं अक्सर घबराता हूँ।
हिन्दी के बिना बच्चों में संस्कार कहा है आता।

मेरा अंग्रेजी से बैर नहीं, है हिन्दी मेरी भाषा।
मात पिता भाई बहन, बन्धु सा अपना नाता।

हर भाषा को पढ़ें लिखें पर हिन्दी में सब काम करें।
आओं हम सब मिलकर अपनी हिन्दी पर अभिमान करें।
बच्चों को अपने सिखलायें हिन्दी का मान बढ़ाये वो।
ऐसा इक दिन ले आयें सब हिन्दी का सम्मान करें।
हिन्दी से ही राग प्रेम कविताओं में भी आता।

मात पिता भाई बहन, बन्धु सा अपना नाता।
मेरा अंग्रेजी से बैर नहीं, है हिन्दी मेरी भाषा।
-०-
अजय कुमार व्दिवेदी
दिल्ली
-०-


***
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भूल कर.…. (गीत) - मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'

 

भूल कर.….
(गीत)
भूल  कर भी सपनों में  आना न कभी  ।
प्यार के फरेब में बहलाना न कभी ...
बेवफा तेरी बेवफाई का वो मन्ज़र याद है
प्यार की जूठी कस्मे खुलाना न कभी ।।
भूल कर ...............................!

जिंदगी में फूलों सी महक रही है सदा ।
राह के काँटों से भी तोड़ा है ना दोस्ताना कभी ...
तमन्ना सदा रही है , खुशियों की सौगात दूँ
दिल में लगा के आग, नयनों से रिझाना ना कभी  ।।
भूल कर............................!

सब कुछ लूटा कर भी, कभी गमगीन ना हुआ ।
परछाई बन कर भी कभी , मेरे करीब आना ना कभी .......
मेरा गम तेरी ख़ुशी , ये तो कुदरत की बात है 
सजधज कर अब ना मुझे , पग्लाना ना कभी  ।।
भूल कर ........................!

तेरा तन - बदन मौजें ले रहा , यौवन में लड़खड़ाना ना कभी ।
दर्द दिया है जो तुमने , दवा बन मेरे करीब आना ना कभी .......
दर्द -ए- दिल का ईलाज, अब तो होना है ना मुमकिन  ।
-०-
मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'
मोहल्ला कोहरियांन, बीकानेर

-०-

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अंतरंगता (नवगीत) - अशोक 'आनन'

अंतरंगता
(नवगीत)
माचिसों से
बारूदों की अंतरंगता -
ठीक नहीं लगती ।

          समंदर सद्भाव का
          अब लावे - सा -
          उबल रहा ।
          मौसम मुस्कानों का
          मशीनगनों को  -
          मचल रहा ।

शोलों से
हवाओं की अंतरंगता -
ठीक नहीं लगती ।

         सद्मावना के दीये भी
         बुझकर -
         उगलने लगे धुआं ।
         आदमी को
         ज़िंदगी लगने लगी -
         मौत का कुआं ।

आंखों से
तिनकों की अंतरंगता -
ठीक नहीं लगती ।

         सुबह से
         दिखते हैं रोज़  -
         वही घृणित चेहरे ।
         अफ़सोस ! जिन्हें
         कर सके न नमन -
         बहुतेरे ।

वसंत से
कौओं की अंतरंगता -
ठीक नहीं लगती ।
-०-
पता:
अशोक 'आनन'
शाजापुर (मध्यप्रदेश)




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लौटना (कविता) - सुशांत सुप्रिय

लौटना 
(कविता)
बरसों बाद लौटा हूँ
अपने बचपन के स्कूल में
जहाँ बरसों पुराने किसी क्लास-रूम में से
झाँक रहा है
स्कूल-बैग उठाए
एक जाना-पहचाना बच्चा

ब्लैक-बोर्ड पर लिखे धुँधले अक्षर
धीरे-धीरे स्पष्ट हो रहे हैं
मैदान में क्रिकेट खेलते
बच्चों के फ़्रीज़ हो चुके चेहरे
फिर से जीवंत होने लगे हैं
सुनहरे फ़्रेम वाले चश्मे के पीछे से
ताक रही हैं दो अनुभवी आँखें
हाथों में चॉक पकड़े

अपने ज़हन के जाले झाड़ कर
मैं उठ खड़ा होता हूँ

लॉन में वह शर्मीला पेड़
अब भी वहीं है
जिस की छाल पर
एक वासंती दिन
दो मासूमों ने कुरेद दिए थे
दिल की तस्वीर के इर्द-गिर्द
अपने-अपने उत्सुक नाम

समय की भिंची मुट्ठियाँ
धीरे-धीरे खुल रही हैं
स्मृतियों के आईने में एक बच्चा
अपना जीवन सँवार रहा है ...

इसी तरह कई जगहों पर
कई बार लौटते हैं हम
उस अंतिम लौटने से पहले
-०-
पता:
सुशांत सुप्रिय
ग़ाज़ियाबाद (उत्तरप्रदेश)

-०-



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