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Sunday 16 August 2020

दिल क्यूँ है (ग़ज़ल) - नदीम हसन चमन

दिल क्यूँ है
(ग़ज़ल) 
दिल क्यूँ है तिरा शिकार बोल
मैं कौन  हूँ  बोल  दीवार बोल

हो गयी है दुश्मन जान ही मेरी
रूह  कब  से  है बे क़रार बोल

दो  चार  रिश्ता  ख़रीद लेने दे
फिर मुहब्बत को बाज़ार बोल

कौन  किसका है नीलामी में
अपने नाम का इश्तेहार बोल

ये तन्हाई पहरे वीरानी अंधेरा
जिसको चाहे वफ़ादार बोल

आँसु आँखों से लिपट गये हैं
इश्क़  लिख  या  अंगार बोल

हर इक चीज़ तेरी अच्छी है
नदीम पसंद हो तो यार बोल
-०-
पता
नदीम हसन चमन
गया (बिहार) 
-०-


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मेरी रूबरू (कविता) - दीपक अनंत राव 'अंशुमान'


मेरी रूबरू 
(कविता)
बैठो हमारे रूबरू
देखना मुझको भर भर के,
मैं भी,
अपनी एक कीमती चीज़ को
करीब से,लगन से
देख रहा हूँ,
ओढा हुआ हूँ
तुम्हारे परवरिश में,
दिल का अब रंग तुम्हारा
सॉस की अब नरमी तुम्हारी
बगैर तेरा कोई सवेरा नहीं,
सातों जनम में,
सजाऊँगा मैं तुझे
अपनी नज़रों की आइने में,
तेरे रुबरु में
रहना चाहता हूँ मैं हमेशा ।
-०-
पता:
दीपक अनंत राव 'अंशुमान'
इडुक्की (केरल)

-०-



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बरसात (कविता) - मोहम्मद मुमताज़ हसन


बरसात
(कविता)
प्रत्येक वर्ष आती है लेकर
उम्मीदें, आशा की एक किरण

सूखे/ बंजर पड़े खेतों को करती है तृप्त
जिसे देख चमक उठते हैं चेहरे किसानों के
भरपूर फसलों की उम्मीद में

धमाचौकड़ी करते हैं बच्चे- छप छप बरसात के पानी में
कागज़ की नाव बनाकर छोड़ते हैं पानी में
और जब  चलती है नाव, बच्चे तालियां बजाकर उछलते हैं बहुत,

परन्तु बरसात- हमारे लिए आती है लेकर
बाढ़ की विभीषिका/त्रासदी/ दर्द और दुख का सैलाब
नदी- प्रलय बनकर टूट पड़ती है बस्तियों पर
बहा ले जाती है घर/गृहस्थी/  सामान सारे
जल प्रलय का दंश झेलते /
लड़ते हैं हम अपने अस्तित्व की लड़ाई-वर्षों से
तिनका तिनका जोड़कर बनाए गए आशियाने को
क्षण भर में नदी में विलीन कर देता है बरसात का पानी
बेबस/ बेपनाह होकर भटकते हैं हम दर बदर
यही है नियति हमारी वर्षों से
काल बनकर बरसती है बरसात हमारे घरों में
हां, मुझे याद है अब भी!!
-0-
पता:
मोहम्मद मुमताज़ हसन
गया (बिहार)

-०-

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केवल झाग , बस वही (अनुदित कहानी) - सुशांत सुप्रिय


केवल झाग , बस वही
(कहानी)
—- मूल लेखक : हर्नांडो टेलेज़
—- अनुवाद : सुशांत सुप्रिय

दुकान में घुसते हुए उसने कुछ नहीं कहा । मैं अपने सबसे अच्छे उस्तरे चमोटे पर घिस रहा था । उसे पहचानते ही मैं काँपने लगा । लेकिन उसने इस ओर ग़ौर नहीं किया । अपनी भावनाओं को छिपाने की उम्मीद में मैं उस्तरों को धार देता रहा । मैंने अपने अंगूठे के मांस पर उनका परीक्षण किया , और फिर उन्हें रोशनी में देखने लगा ।
उसी पल उसने गोलियों से जड़ा अपना कमरबंद निकाल लिया जिससे उसके पिस्तौल की खोल लटकी हुई थी । उसने उसे दीवार में लगी एक कील पर टाँग दिया और अपनी फ़ौजी टोपी भी वहीं लटका दी । फिर वह मेरी ओर मुड़ा और अपनी टाई की गाँठ ढीली करता हुआ बोला , “ भयानक गर्मी है । ज़रा मेरी दाढ़ी बना दो । “ यह कहकर वह कुर्सी पर बैठ गया ।
मैंने अंदाज़ा लगाया कि उसकी दाढ़ी चार दिन पुरानी थी — हाल ही के वे चार दिन जब वे लोग हमारे सैनिकों के विरुद्ध अभियान चला रहे थे । उसका चेहरा धूप में ज़्यादा देर तक रहने की वजह से जला हुआ-सा लग रहा था । मैं ध्यान से साबुन से झाग तैयार करने लगा । मैंने साबुन के कुछ टुकड़े काट कर उन्हें एक कप में डाला और उसमें गर्म पानी डाल कर उसे ब्रश से हिलाने लगा । तत्काल झाग उठने लगा ।
“ समूह के अन्य लड़कों की दाढ़ी भी इतनी ही बढ़ गई होगी , “ उसने कहा । मैं झाग को फेंटता रहा ।
“ लेकिन हम सफल हुए , समझे ? हमने उनके प्रमुख लोगों को पकड़ लिया । कुछ को हम मुर्दा लाए , कुछ अन्य को ज़िंदा पकड़ लाए । लेकिन जल्दी ही वे सब मारे जाएँगे । “
“ आप कितने लोगों को पकड़ पाए ? “ मैंने पूछा ।
“ चौदह । हमें उन्हें पकड़ने के लिए घने जंगल में जाना पड़ा । पर हम सारा हिसाब-किताब चुका लेंगे । उनमें से कोई भी जीवित नहीं बचेगा । “
जब उसने झाग से भरा ब्रश मेरे हाथ में देखा तो उसने कुर्सी पर पीछे टेक लगा ली । मुझे अब भी उसके चारों ओर एक बड़ा कपड़ा डालना था । इसमें कोई शक नहीं था कि मैं घबराया हुआ था । मैंने एक दराज में से एक बड़ा कपड़ा निकाला और उसके गले के चारों ओर गाँठ बाँध कर वह कपड़ा उस पर डाल दिया । उसने बात करना जारी रखा । शायद उसने सोचा कि मैं उसके दल से सहानुभूति रखता हूँ ।
“ हमने जो किया उससे शहर के निवासियों को सबक़ मिला होगा । “ उसने कहा ।
“ हाँ , “ मैंने उसके गर्दन पर बँधी कपड़े की गाँठ को कसते हुए कहा ।
“ हमने बढ़िया ढंग से वह काम किया , नहीं ? “
“ बहुत बढ़िया , “ ब्रश के लिए मुड़ते हुए मैंने जवाब दिया ।
उस आदमी ने थकान का प्रदर्शन करते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं और झाग के ठंडे स्पर्श की प्रतीक्षा करते हुए बैठा रहा । इससे पहले मैंने कभी उसे अपने इतने क़रीब नहीं पाया था । जिस दिन उसने शहर के सभी निवासियों को स्कूल के आँगन में उन चार विद्रोहियों की लाशों को देखने के लिए इकट्ठा किया था , उस दिन मैंने कुछ पल के लिए खुद को उसके सामने पाया था । पर विद्रोहियों की क्षत-विक्षत देहों के दृश्य की वजह से मैं उसके चेहरे को गौर से नहीं देख सका था । वही इस पूरे कांड का संचालक था । उसी का चेहरा अब मैं अपने हाथों में लेने वाला था ।
वाक़ई वह कोई अप्रिय चेहरा नहीं था । और वह दाढ़ी भी अशोभनीय नहीं थी , जो उसे थोड़ी बड़ी उम्र का बना रही थी । उसका नाम टौरेस था , कप्तान टौरेस ।
मैं उसके चेहरे पर झाग की पहली परत लगाने लगा । उसने अपनी आँखें बंद रखीं ।
मुझे झपकी लेने में मज़ा आएगा , “ वह बोला । “ लेकिन आज शाम के लिए बहुत सारा काम किया जाना बाक़ी है । “
मैंने ब्रश उठा कर बनावटी उदासीनता से कहा , “ क्या वह काम विद्रोहियों को गोली मारने का
है ? “
“ हाँ , उसी तरह का काम है , “ उसने उत्तर दिया । “ लेकिन थोड़ा धीमा । “
“ सबको मारना है ? “
“ नहीं , केवल कुछ को । “
मैं उसके गालों पर झाग लगाता रहा । मेरे हाथ फिर से काँपने लगे । वह आदमी इससे अनभिज्ञ
था । मेरी क़िस्मत अच्छी थी । लेकिन मैंने चाहा कि काश , वह यहाँ नहीं आया होता । शायद हमारे कई लोगों ने उसे मेरी दुकान में दाखिल होते हुए देख लिया होगा । दुश्मन मेरे घर में आया था । मैंने ज़िम्मेदारी महसूस
की ।
मुझे किसी आम नाई की तरह ही बहुत सावधानी और सफ़ाई से उसकी दाढ़ी बनानी थी , जैसे कि वह कोई अच्छा ग्राहक हो । उसके एक भी रोम-छिद्र से खून की बूँद नहीं निकलनी चाहिए । मुझे यह भी सुनिश्चित करना था कि मेरे उस्तरे की ब्लेड उसकी त्वचा के किसी भी छोटे-से गड्ढे में न फिसले । मुझे यह भी देखना था कि उसकी त्वचा मुलायम और चमकदार बनी रहे ताकि जब मैं अपने हाथ का पिछला हिस्सा उस के गाल पर फेरूँ , तो वहाँ कोई भी बचा हुआ बाल महसूस न हो । हाँ , गुप्त रूप से मैं भी एक क्रांतिकारी था , लेकिन इसके साथ ही मैं एक कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार नाई भी था । मुझे अपने पेशे और अपने काम करने के तरीक़े पर गर्व था और चार दिनों की बढ़ी वह दाढ़ी एक चुनौती थी ।
मैंने उस्तरा लिया , उसके ब्लेड वाले फाँक को बाहर निकाला और फिर एक ओर की कलम के नीचे अपने काम में लग गया । उस्तरा आराम से त्वचा पर चलने लगा । उसकी दाढ़ी मुलायम नहीं थी बल्कि कड़ी थी । वह ज़्यादा लम्बी नहीं थी , पर घनी थी । धीरे-धीरे साफ़ त्वचा उभरने लगी । उस्तरा किरकिराते हुए त्वचा पर आगे बढ़ता रहा । वह वैसी ही साधारण आवाज़ निकालता रहा जबकि उसके दूसरे सिरे पर झाग और बालों के गुच्छे जमा होते चले गए ।
मैं उस्तरे को साफ़ करने के लिए एक पल रुका । फिर उस्तरे को धार देने के लिए मैंने दोबारा चमोटा उठा लिया क्योंकि मैं सही ढंग से काम करने वाला नाई हूँ । उस आदमी ने अपनी बंद आँखें अब खोल लीं । उसने अपना एक हाथ बँधे हुए कपड़े के भीतर से बाहर निकाला और उसने उस जगह अपने गाल की त्वचा को अपने हाथ से महसूस किया , जहाँ से झाग अब साफ़ कर दिया गया था । फिर वह बोला , “ आज शाम छह बजे स्कूल के अहाते में आना । “
“ क्या जो उस दिन देखा था , वही देखने के लिए ? “ मैंने भयभीत होते हुए पूछा ।
“ आज का तमाशा पिछली बार से बेहतर हो सकता है , “ उसने कहा ।
“ आपकी योजना क्या करने की है ? “
“ मैं अभी नहीं जानता । लेकिन हम सब वहाँ अपना मनोरंजन करेंगे । “
एक बार फिर उसने पीछे कुर्सी पर टेक लगा कर अपनी आँखें मूँद लीं । मैं उस्तरा लेकर उसकी ओर बढ़ा ।
“ क्या आप उन सभी को सज़ा देना चाहते हैं ? “ जोखिम उठाते हुए मैंने सहम कर पूछा ।
“ हाँ , सभी को । “
साबुन का झाग उसके चेहरे पर सूख रहा था । मुझे जल्दी करनी पड़ी । आईने में मैंने गली की ओर देखा । वह पहले जैसी ही नज़र आई : पंसारी की दुकान में दो या तीन ग्राहक मौजूद थे। फिर मैंने दीवार-घड़ी पर नज़र दौड़ाई : दोपहर के दो बज कर बीस मिनट हो रहे थे । उस्तरा त्वचा पर नीचे की ओर चलता रहा । अब मैं दूसरी कलम के नीचे की ओर दाढ़ी बना रहा था । घनी , नीली दाढ़ी । उसे कुछ कवियों या पुजारियों की दाढ़ी की तरह इस दाढ़ी को बढ़ने का अवसर देना चाहिए था । वह दाढ़ी उस पर फबती । बहुत सारे लोग उसे पहचान नहीं पाते । इसमें उसका फ़ायदा ही था — मैंने गले के पास की जगह को मुलायम बनाने का प्रयास करते हुए सोचा । इस जगह पर उस्तरे को बड़ी प्रवीणता से चलाना था । हालाँकि यहाँ मुलायम बाल थे पर वे छोटे-छोटे घुँघराले गुच्छों में बदल गए थे । घने , घुँघराले बालों वाला कोई भी रोम-छिद्र खुल सकता था और उससे खून की बूँद बाहर टपक सकती थी । मेरे जैसा अच्छा नाई अपने किसी भी ग्राहक के साथ ऐसा नहीं होने देता । और यह तो विशिष्ट ग्राहक था । हममें से कितनों को इसने गोली मार देने का आदेश दे कर मरवा दिया था ? हममें से कितनों की मृत देह को इसने क्षत-विक्षत करने का आदेश दे दिया था ? बेहतर होता कि मैं यह सब नहीं सोचता । टोरेस यह नहीं जानता था कि मैं उसका शत्रु था । न उसे इस बात का पता था , न ही उसके अन्य साथी यह बात जानते थे । इस गुप्त बात के बारे में-०-
पता:
सुशांत सुप्रिय
ग़ाज़ियाबाद (उत्तरप्रदेश)

-०-



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