(कविता)
बैठो हमारे रूबरू
देखना मुझको भर भर के,
मैं भी,
अपनी एक कीमती चीज़ को
करीब से,लगन से
देख रहा हूँ,
ओढा हुआ हूँ
तुम्हारे परवरिश में,
दिल का अब रंग तुम्हारा
सॉस की अब नरमी तुम्हारी
बगैर तेरा कोई सवेरा नहीं,
सातों जनम में,
सजाऊँगा मैं तुझे
अपनी नज़रों की आइने में,
तेरे रुबरु में
रहना चाहता हूँ मैं हमेशा ।
-०-
पता:
देखना मुझको भर भर के,
मैं भी,
अपनी एक कीमती चीज़ को
करीब से,लगन से
देख रहा हूँ,
ओढा हुआ हूँ
तुम्हारे परवरिश में,
दिल का अब रंग तुम्हारा
सॉस की अब नरमी तुम्हारी
बगैर तेरा कोई सवेरा नहीं,
सातों जनम में,
सजाऊँगा मैं तुझे
अपनी नज़रों की आइने में,
तेरे रुबरु में
रहना चाहता हूँ मैं हमेशा ।
-०-
पता:
दीपक अनंत राव 'अंशुमान' जी की रचनाएं पढ़ने के लिए शीर्षक चित्र पर क्लिक करें!
No comments:
Post a Comment