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Sunday, 16 August 2020

बरसात (कविता) - मोहम्मद मुमताज़ हसन


बरसात
(कविता)
प्रत्येक वर्ष आती है लेकर
उम्मीदें, आशा की एक किरण

सूखे/ बंजर पड़े खेतों को करती है तृप्त
जिसे देख चमक उठते हैं चेहरे किसानों के
भरपूर फसलों की उम्मीद में

धमाचौकड़ी करते हैं बच्चे- छप छप बरसात के पानी में
कागज़ की नाव बनाकर छोड़ते हैं पानी में
और जब  चलती है नाव, बच्चे तालियां बजाकर उछलते हैं बहुत,

परन्तु बरसात- हमारे लिए आती है लेकर
बाढ़ की विभीषिका/त्रासदी/ दर्द और दुख का सैलाब
नदी- प्रलय बनकर टूट पड़ती है बस्तियों पर
बहा ले जाती है घर/गृहस्थी/  सामान सारे
जल प्रलय का दंश झेलते /
लड़ते हैं हम अपने अस्तित्व की लड़ाई-वर्षों से
तिनका तिनका जोड़कर बनाए गए आशियाने को
क्षण भर में नदी में विलीन कर देता है बरसात का पानी
बेबस/ बेपनाह होकर भटकते हैं हम दर बदर
यही है नियति हमारी वर्षों से
काल बनकर बरसती है बरसात हमारे घरों में
हां, मुझे याद है अब भी!!
-0-
पता:
मोहम्मद मुमताज़ हसन
गया (बिहार)

-०-

***
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