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Friday, 8 November 2019

सौन्दर्य के दोहे (दोहा) - शरद खरे


सौन्दर्य के दोहे (दोहा)
(दोहा)
दर्पण ने नग़मे रचे,महक उठा है रूप !
वन-उपवन को मिल रही,सचमुच मोहक धूप !!

इठलाता यौवन फिरे,काया है भरपूर !
लगता नदिया में 'शरद',आया जैसे पूर !!

उजियारा दिखने लगा,चकाचौंध है आंख !
मन-पंछी उड़ने लगा,नीलगगन बिन पांख !!

अधरों पर लाली खिली,गाल हो गये लाल !
नयन नशीले देखकर,आने वाला काल !!

अंगड़ाई,आवेश है,मस्ती है,उन्माद !
उजड़ेगा या अब 'शरद' ,हो कोईआबाद !!

बासंती परिवेश है,बासंती है भाव !
वह ही खुश प्रिय का नहीं,जिसको आज अभाव !!

मन बौराया,तन हुआ,मादकता- पर्याय !
अंतरमन रचने लगा,गीतों का अध्याय !!

नगरी है ये नेह की,दिल मिलते बेचैन !
प्यासे हैं,सबके अधर,नयन बहुत बेचैन !!

रूप,गंध,रस,प्रीत है,पलता है अनुराग !
सबके उर गाने लगे,मिलन- प्रणय के राग !!-०-
प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
मंडला (मप्र)
-०-

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लौट आई (कविता) - सुरेखा शर्मा 'सुनील'

लौट आई
(कविता)
चेहरे की हंसी
दिल की खुशी
कुछ पल
तेरे पास
आकर रुकी
हाले-ए-दिल
सुनाया, फिर....
चेहरे की हंसी
दिल की खुशी
कुछ पल तेरे पास
आकर रुकी
बेचैन होकर
डर कर जुदाई से
"लौट आई"
दरवाजे पर
आहट के साथ
तेरे पास!
चेहरे की हंसी
दिल की खुशी
कुछ पल तेरे पास
आकर रुकी...!
आगे बढ़ चली
-०-
सुरेखा शर्मा 'सुनील'
मेरठ (उत्तर प्रदेश)
-०-

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गुनहगार (लघुकथा) - इंद्रजीत कौशिक

गुनहगार 
(लघुकथा)
राज्य स्तरीय प्रतियोगिता परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात पुलिस अधिकारी के रूप में फील्ड में यह पहली पोस्टिंग थी । एक महिला होने के कारण पुलिस अधिकारी होते हुए भी सभी मामलों को संवेदनशीलता के साथ देखने की आदत थी ।
शहर में चल रहे अवैध हुक्का बारों की शिकायतें आने के बाद उसे इस पर कार्यवाही करने की जिम्मेदारी सौंपी गई । एक दिन योजना बनाकर बिना किसी को बताए औचक रूप से जीप निकाल कर उसने एक बड़े हुक्का बार पर छापा मारा तो देखा कि वहां बड़ी संख्या में लड़के लड़कियां नशे के आलम में झूम रहे थे ।
पुलिस को देखते ही वहां हड़कंप मच गया और अफरा तफरी के माहौल में कितने ही संभ्रांत परिवारों के लड़के लड़कियों को जीप में बिठाकर थाने लाया गया । 
थाने पहुंचते ही उन बच्चों के अभिभावकों के फोन आने शुरू हो गए और उनके बच्चों को छोड़ देने का अनुरोध करने लगे । 
उनमें से अधिकांश को वह व्यक्तिगत रूप से जानती थी । खाते-पीते परिवार के इन लोगों के पास किसी चीज की कमी नहीं है । भरपूर पैसा और हर किस्म की सुख सुविधा होने के बावजूद ऐसे अभिभावकों के बच्चे गलत राह पर क्यों चले जा रहे हैं यह सवाल उसके मन को अशांत किए जा रहा था । देश के भावी कर्णधारों को पढ़ाई लिखाई की उम्र में आखिर किस तरह के सुकून की तलाश है ? 
एक तरफ उन अभावग्रस्त परिवारों के बच्चे हैं जो साधनों के अभाव में चाहते हुए भी पढ़ाई नहीं कर पा रहे , दूसरी तरफ सारे सुख और साधन संपन्न होते हुए भी अमीर घरों के ये बच्चे नशे के जाल में फस कर अपना भविष्य अंधकार में डाल रहे हैं । आखिर कौन जिम्मेदार है इस हालात के लिए ? 
सजा का असली हकदार कौन है ये मासूम बच्चे या फिर इनके अभिभावक अथवा ये समाज ? जब तक इस यक्ष प्रश्न का उत्तर नहीं मिल जाता तब तक वह कार्रवाई करें भी तो किस पर ? सोचते हुए उसने उन पकड़े गए सभी बच्चों को समझा-बुझाकर घर जाने दिया ।
-०-
इंद्रजीत कौशिक
चंदन सागर वेल, बीकानेर (राजस्थान)
-०-
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भाव गङ्गा (कविता) - उर्मिला पन्त पाण्डेय 'हंसु्र्मिला' (नेपाल)

भाव गङ्गा
(कविता)

" भाव गङ्गा ' मे बहती हूँ मै
भाव मे हि गोता लगाती हूँ मै

भाव गङ्गा मे तैर-तैर कर
'ज्ञान गङ्गा ' मे नहाती हूँ मै
'ज्ञान गङ्गा ' के सागर मे
'गहराई ' तक जाती हूँ मै

भाव सागर मे गोता लगा के
' ज्ञान की मोति ' चुन लाती हूँ मै

ज्ञान की मोति चुनते-चुनते
' प्रेम की ज्योति ' पाती हूँ मै

प्रेम भाव के ' स्नेहिल-मोति '
' सबमे बाँटना ' चाहती हूँ मै । "....!?
-०-
उर्मिला पन्त पाण्डेय 'हंसु्र्मिला'
ज्ञानेश्वर , काठमाण्डौँ , नेपाल

-०-

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श्रीगुरुदेव शरणं मम (कविता) - डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया


श्रीगुरुदेव शरणं मम
(कविता)

सूर्योदय की प्रथम किरण-सी
हमारे जीवन में चेतना भरते हैं।
उपदेश हमको देते नहीं,
स्वयं जी कर बताते हैं।।

आजीवन प्रहरी बनके
संसार की रक्षा करते हैं।
अंधेरे में भटके लोगों के
आकाश दीप बनते  हैं।।
गुरु पत्थर– सा हमको
हीरा– सा चमकाते हैं।
हमारे सुखे हृदय-स्थल को
शहद– सा झरना बनाते हैं।।
निस्वार्थ प्रेम– भाव के
परिधान से हम को सजाते हैं।
सेवा, त्याग, समर्पण से
हमारा शृंगार करते हैं।।
शौर्य, साहस दृढता की़
संतरी– सी हूँकार भरते हैं।
छोटे–बडे संघर्षों की
हम को विजय माला पहनाते हैं।।

ऐसे अपने आजीवन सानिध्य में
हमारा चारित्र्य निर्माण करते हैं।
अपनी स्नेह सरिता सेरोज
हमारा अभिषेक करते हैं।।
कलम की नोक सक्षम नहीं है
गुरु का महत्व लिख पाये!
श्याही की इतनी ताकत नहीं
गुरु गुण अंकित कर पाये,
गुरु गुण अंकित कर पाये।।
-०-
संपर्क: 
डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया
सौराष्ट्र (गुजरात)

-०-

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