गुनहगार
(लघुकथा)
राज्य स्तरीय प्रतियोगिता परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात पुलिस अधिकारी के रूप में फील्ड में यह पहली पोस्टिंग थी । एक महिला होने के कारण पुलिस अधिकारी होते हुए भी सभी मामलों को संवेदनशीलता के साथ देखने की आदत थी ।
शहर में चल रहे अवैध हुक्का बारों की शिकायतें आने के बाद उसे इस पर कार्यवाही करने की जिम्मेदारी सौंपी गई । एक दिन योजना बनाकर बिना किसी को बताए औचक रूप से जीप निकाल कर उसने एक बड़े हुक्का बार पर छापा मारा तो देखा कि वहां बड़ी संख्या में लड़के लड़कियां नशे के आलम में झूम रहे थे ।
पुलिस को देखते ही वहां हड़कंप मच गया और अफरा तफरी के माहौल में कितने ही संभ्रांत परिवारों के लड़के लड़कियों को जीप में बिठाकर थाने लाया गया ।
थाने पहुंचते ही उन बच्चों के अभिभावकों के फोन आने शुरू हो गए और उनके बच्चों को छोड़ देने का अनुरोध करने लगे ।
उनमें से अधिकांश को वह व्यक्तिगत रूप से जानती थी । खाते-पीते परिवार के इन लोगों के पास किसी चीज की कमी नहीं है । भरपूर पैसा और हर किस्म की सुख सुविधा होने के बावजूद ऐसे अभिभावकों के बच्चे गलत राह पर क्यों चले जा रहे हैं यह सवाल उसके मन को अशांत किए जा रहा था । देश के भावी कर्णधारों को पढ़ाई लिखाई की उम्र में आखिर किस तरह के सुकून की तलाश है ?
एक तरफ उन अभावग्रस्त परिवारों के बच्चे हैं जो साधनों के अभाव में चाहते हुए भी पढ़ाई नहीं कर पा रहे , दूसरी तरफ सारे सुख और साधन संपन्न होते हुए भी अमीर घरों के ये बच्चे नशे के जाल में फस कर अपना भविष्य अंधकार में डाल रहे हैं । आखिर कौन जिम्मेदार है इस हालात के लिए ?
सजा का असली हकदार कौन है ये मासूम बच्चे या फिर इनके अभिभावक अथवा ये समाज ? जब तक इस यक्ष प्रश्न का उत्तर नहीं मिल जाता तब तक वह कार्रवाई करें भी तो किस पर ? सोचते हुए उसने उन पकड़े गए सभी बच्चों को समझा-बुझाकर घर जाने दिया ।
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इंद्रजीत कौशिक
चंदन सागर वेल, बीकानेर (राजस्थान)
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बढ़िया।
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