श्रीगुरुदेव शरणं मम
(कविता)
सूर्योदय की प्रथम किरण-सी
हमारे जीवन में चेतना भरते हैं।
उपदेश हमको देते नहीं,
स्वयं जी कर बताते हैं।।
सूर्योदय की प्रथम किरण-सी
हमारे जीवन में चेतना भरते हैं।
उपदेश हमको देते नहीं,
स्वयं जी कर बताते हैं।।
आजीवन प्रहरी बनके
संसार की रक्षा करते हैं।
अंधेरे में भटके लोगों के
आकाश दीप बनते हैं।।
गुरु पत्थर– सा हमको
हीरा– सा चमकाते हैं।
हमारे सुखे हृदय-स्थल को
शहद– सा झरना बनाते हैं।।
संसार की रक्षा करते हैं।
अंधेरे में भटके लोगों के
आकाश दीप बनते हैं।।
गुरु पत्थर– सा हमको
हीरा– सा चमकाते हैं।
हमारे सुखे हृदय-स्थल को
शहद– सा झरना बनाते हैं।।
निस्वार्थ प्रेम– भाव के
परिधान से हम को सजाते हैं।
सेवा, त्याग, समर्पण से
हमारा शृंगार करते हैं।।
शौर्य, साहस दृढता की़
संतरी– सी हूँकार भरते हैं।
छोटे–बडे संघर्षों की
हम को विजय माला पहनाते हैं।।
ऐसे अपने आजीवन सानिध्य में
हमारा चारित्र्य निर्माण करते हैं।
अपनी स्नेह सरिता सेरोज
हमारा अभिषेक करते हैं।।
कलम की नोक सक्षम नहीं है
गुरु का महत्व लिख पाये!
श्याही की इतनी ताकत नहीं
गुरु गुण अंकित कर पाये,
गुरु गुण अंकित कर पाये।।
परिधान से हम को सजाते हैं।
सेवा, त्याग, समर्पण से
हमारा शृंगार करते हैं।।
शौर्य, साहस दृढता की़
संतरी– सी हूँकार भरते हैं।
छोटे–बडे संघर्षों की
हम को विजय माला पहनाते हैं।।
ऐसे अपने आजीवन सानिध्य में
हमारा चारित्र्य निर्माण करते हैं।
अपनी स्नेह सरिता सेरोज
हमारा अभिषेक करते हैं।।
कलम की नोक सक्षम नहीं है
गुरु का महत्व लिख पाये!
श्याही की इतनी ताकत नहीं
गुरु गुण अंकित कर पाये,
गुरु गुण अंकित कर पाये।।
No comments:
Post a Comment