*** हिंदी प्रचार-प्रसार एवं सभी रचनाकर्मियों को समर्पित 'सृजन महोत्सव' चिट्ठे पर आप सभी हिंदी प्रेमियों का हार्दिक-हार्दिक स्वागत !!! संपादक:राजकुमार जैन'राजन'- 9828219919 और मच्छिंद्र भिसे- 9730491952 ***

Thursday 16 April 2020

खुल गई आँखे (लघुकथा) - डॉ. शैल चन्द्रा

खुल गई आँखे
(लघुकथा)
डायमंड ज्वेलर्स के मालिक सेठ रोशनदास हैरान परेशान से बैठे थे। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनका एक कारोबारी मित्र जो चार दिन पहले उनके दुकान पर मिलने आया था वह सीधा विदेश से आया था। आज ही उनको सूचना मिली कि उनको कोरोना पॉजिटिव पाया गया है। तब से वे बहुत ज्यादा डरे हुये थे।
अब कुछ ही देर में उनको क्वारन टाईन में भेजा जाएगा। उन्होंने सेठानी से कहा,-" सुनो, घर में अस्सी लाख रुपए नगद रखे हुए हैं। मैनें सारे पैसे तहखाने में छुपा कर रखे हैं। यह घर दुकान सब तुम्हारे नाम करवा दूंगा बस तुम मेरी अच्छी तरह इलाज करवाना।"
यह सुनकर सेठानी ने आँखों में आँसू भरकर कहा,-"सेठ जी, चाहे तुम्हारे पास करोड़ रुपए रहे पर यह रोग लाइलाज़ है। ऐसा होता तो दुनिया के धनवान देशों में कोरोना से कोई नहीं मरता।आपने पूरी ज़िंदगी कंजूसी कर -कर के यह लाखों रुपए इकट्ठा किया। न ढंग का खाया न पिया न ही खिलाया ।न जाने कितने मजदूरों को सताया।कितनों को गिरवी रखने के बहाने उनके जमीन जेवर मकान आपने लूटा। सोने -चाँदी में मिलावट कर बेचा। अब भला यह क्या काम का? मुझे कोई धन दौलत नहीं चाहिये और क्या गारंटी है कि मुझे कोरोना नहीं होगा। मैं तो आप के साथ ही हूँ। ऐसा करते हैं कि इस अस्सी लाख में पचास लाख सरकार के कोरोना आपदा कोष में दान कर देते हैं। ईश्वर की कृपा से अगर जीवित बच गए तो बाकि के पैसे को दान पुण्य और अच्छे जीवनयापन में उपयोग करेंगें।"
सेठानी की बात सुनकर सेठ रोशनदास की आँखे खुल गई।
---
पता


 डॉ. शैल चन्द्रा
धमतरी (छत्तीसगढ़)
-०-
***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

बेबस (कविता) - प्रशान्त कुमार 'पी.के.'

बेबस

(कविता) 
जिंदगी में दर्द कुछ ऐसा बढ़ रहा आजकल।
मौत के साये का बादल चढ़ रहा आजकल।
फुरसत न मिलती थी कभी अपनो से मिलने की हमें,
छुट्टियों में घर में भी दम घुट रहा आजकल।
हम तो खाने के लिए जीने में ही लगे रहे,
जीने को खाने को कमा भूखा मर रहा आजकल।
जिनकी तड़प से रुक न पाये बेजार से माँ पिता,
बेबस और लाचार सा रोना पड़ रहा आजकल।
जिंदगी ठहरी सी लगती वक्त का पहिया थमा,
बस कर खुदा की रहमतों का आसरा आजकल।
आला कमान दे दे दुहाई, घर पर बिठाता है हमें,
"पी.के." नजर अंदाज आदमी क्यूँ कर रहा आजकल।।
-०-
पता -
प्रशान्त कुमार 'पी.के.'
हरदोई (उत्तर प्रदेश)
-०-

***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

भ्रष्टाचार (कविता) - डॉ. कान्ति लाल यादव


भ्रष्टाचार
(कविता)
भ्रष्टाचार का आवरण इतना बड़ा है,
जितना खोलो उतना बढ़ता जाएगा,
द्रौपदी की साड़ी तरह की तरह खींचता जाएगा।
ऊपर से नीचे तक, बड़े से छोटे तक सभी इसमें लिप्त है,
तू ईश्वर की तरह सब जगह व्याप्त है,
पाताल तक जड़ें जमाए गड़ा है
हिमालय की तरह खड़ा है
अंगद के पांव की तरह अड़ा है,
जो इससे करता है प्यार,
तो माना जाएगा उत्तम विचार
क्योंकि मैं दुनिया का अजूबा हूं।
दो मुझे खूब दुलार- लाड- प्यार
और बोलो 'जय भ्रष्टाचार'।
जो इसका करेगा विरोध ,
वो कहलाएगा बेईमान
देश के विकास का टूट जाएगा अरमान
सच्चाई को सुनाएंगे फरमान
भ्रष्टाचार का ताबीज जिसने पहना है ,
हर बीमारी का इलाज उसने मुफ्त में पाया है
ईमान के तिनके को फूँक से उड़ाया है
आंख से बचाकर चिलम से जलाकर धुएं की तरह फैलाया है।
इस काले धन के गुब्बारे में
तू एक दिन फंस जाएगा
वो दिन भी आएगा,
भ्रष्टाचार के सारे पैंतरे तू चुटकी में भूल जाएगा।
-०-
डॉ. कान्ति लाल यादव
(सामाजिक कार्यकर्ता)
-०-

***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ