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Thursday, 16 April 2020

बेबस (कविता) - प्रशान्त कुमार 'पी.के.'

बेबस

(कविता) 
जिंदगी में दर्द कुछ ऐसा बढ़ रहा आजकल।
मौत के साये का बादल चढ़ रहा आजकल।
फुरसत न मिलती थी कभी अपनो से मिलने की हमें,
छुट्टियों में घर में भी दम घुट रहा आजकल।
हम तो खाने के लिए जीने में ही लगे रहे,
जीने को खाने को कमा भूखा मर रहा आजकल।
जिनकी तड़प से रुक न पाये बेजार से माँ पिता,
बेबस और लाचार सा रोना पड़ रहा आजकल।
जिंदगी ठहरी सी लगती वक्त का पहिया थमा,
बस कर खुदा की रहमतों का आसरा आजकल।
आला कमान दे दे दुहाई, घर पर बिठाता है हमें,
"पी.के." नजर अंदाज आदमी क्यूँ कर रहा आजकल।।
-०-
पता -
प्रशान्त कुमार 'पी.के.'
हरदोई (उत्तर प्रदेश)
-०-

***
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