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Thursday 16 April 2020

भ्रष्टाचार (कविता) - डॉ. कान्ति लाल यादव


भ्रष्टाचार
(कविता)
भ्रष्टाचार का आवरण इतना बड़ा है,
जितना खोलो उतना बढ़ता जाएगा,
द्रौपदी की साड़ी तरह की तरह खींचता जाएगा।
ऊपर से नीचे तक, बड़े से छोटे तक सभी इसमें लिप्त है,
तू ईश्वर की तरह सब जगह व्याप्त है,
पाताल तक जड़ें जमाए गड़ा है
हिमालय की तरह खड़ा है
अंगद के पांव की तरह अड़ा है,
जो इससे करता है प्यार,
तो माना जाएगा उत्तम विचार
क्योंकि मैं दुनिया का अजूबा हूं।
दो मुझे खूब दुलार- लाड- प्यार
और बोलो 'जय भ्रष्टाचार'।
जो इसका करेगा विरोध ,
वो कहलाएगा बेईमान
देश के विकास का टूट जाएगा अरमान
सच्चाई को सुनाएंगे फरमान
भ्रष्टाचार का ताबीज जिसने पहना है ,
हर बीमारी का इलाज उसने मुफ्त में पाया है
ईमान के तिनके को फूँक से उड़ाया है
आंख से बचाकर चिलम से जलाकर धुएं की तरह फैलाया है।
इस काले धन के गुब्बारे में
तू एक दिन फंस जाएगा
वो दिन भी आएगा,
भ्रष्टाचार के सारे पैंतरे तू चुटकी में भूल जाएगा।
-०-
डॉ. कान्ति लाल यादव
(सामाजिक कार्यकर्ता)
-०-

***
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