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Monday 30 November 2020

मेरी चिंता छोड़ (लघुकथा) - डॉ. अलका पाण्डेय

 

मेरी चिंता छोड़
(लघुकथा)
राकेश बच्चा ज़रा ये एप्प डाऊन कैसे करते है ...बता दे ...
माँ में काम कर रहा हूँ थोड़ी देर में बताता हूँ । 
ठीक है बेटा अच्छा ये बता आजकल मोबाइल में बोल कर टाइप करते है वो कैसे करते है .
माँ बहुत आसान है जहां आप टाइप करती है वहीं माइक जैसा चिंन्ह है उसको दबाकर बोलोगी तो टाइप हो जायेगा ..
अरे यह तो बड़ा आसान है माँ बच्चों जैसे ख़ुश हो कर टाइप करने का मज़ा लेने लगी ..
कुछ देर में बेटा फ़ोटो को खुबसूरत बनाने वाला “एप “ कौन सा है ?
माँ पागल कर दोगी आप को भी बहुत शौक़ चराया है मोबाईल फ़ेस बुक का ...
कहाँ है काम कर रहा हूँ थोड़ी देर में बता दूँगा पहले भी बताया था पर आप बार बार पूछती रहती हो तंग आ गया हूँ आपके इन सारे चोचलो से ..
क्या करोगी यह सब सींख कर कभी “केंडीक्रस” गेम् खेलना सिखाओ कभी एप डाऊन लोड करो सारा दिन मोबाईल में लगी रहती हो , भगवान का भजन करा करो तुम भी शांत रहोगी व घर में भी शांती रहेगी ...
माँ दुखी हो कर बोली बेटा तुम्हें यह बोलना मैंने ही सिखाया है तुम छोटे थे एक ही सवाल दस दस बार करते थे मैं ख़ुश हो हो कर जवाब देती थी,कभी खीजीं नहीं न नाराज़ हुई ...
बेटा मैं वह सब नही करती तो आज तुम इतना कुछ नहीं कर पाते “
मेने चंद जानकारी क्या मागी तुम मुझे उल्टा सिधा बोलने लगे मत भूलो मैं तुम्हारी माँ हूँ तुम मेरे बच्चे मेरा अंश ..,
माँ रोते हुये अपने कमरे बंद हो कर रोने लगी क्या पूछा जो यह इतना बोलने लगा ..अब तो मैं सब सिख कर ही रहूँगी ...
क्या समझता है अपने आप को गुगल बाबा की मददत ले लूँगी
और माँ गुगल में सर्च करने लगी
राकेश को अपनी गलती का एहसास हुआ वह माँ को आवाज़ देने लगा माँ आओ बताता हूँ .
माँ ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो राकेश को लगा बात बिगड़ गई है माँ नाराज़ हो गई है ..
वह प्यार से माँ खोल न दरवाजा   
मैं अब बताता हूँ नाराज़ मत हो
मैंने बस यू ही कह दिया प्लीज़ माँ देख मैं रो दूँगा ।
माँ बहार आती है और कहती है
बेटा तेरा बेटा होगा जब इस तरह से वो तुम्हें जवाब देगा , तब तुम्हें समझ आयेगी ...
माँ बाप बच्चों से क्या चाहते एक छोटी सी मदद माँगने पर सुनना पड़े तो उन्हें अपनी ही परवरिश पर शंक होने लगता है की वो कहाँ ग़लत थे ,
ला बता क्या पूछ रही थी
कुछ नहीं मुझे पता चल गया है कैसे करना है..
जब तुझे बड़ा कर इतना बोलना सिखा सकती हूँ तो यह सब भी कर सकतीलहूं ..जा टेंशन मत ले अपना काम कर मेरी चिंता छोड़ ......
मै तेरा माँ हूँ और माँ ही रहूँगी तु मेरा बेटा है और रहेगा .. 
-०-
स्थाई पता
डॉ. अलका पाण्डेय
नवी मुंबई (महाराष्ट्र)
-०-

***
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कल फिर (कविता) - हेमराज सिंह

 

कल फिर
(कविता)
कल फिर 
खिलेगी धूप
झाँकती सी लगेगी दरो दीवारों से
प्राची से फूटता भिन्नसार,
       बढ़ेगा धीरे-धीरे
        धरा से मिलने।

कल फिर
चहकेगी चिड़ियाँ पहली ही किरण के साथ।
बाहर निकल नीड़ से
        आशा और विश्वास के पंख फैला
        उड़ने खुले गगन में।

कल फिर
खिलेगे कुसुम खोल कर 
गाँठे अपनी,
पूरब की और मुँह किये
         फैलाते सौरभ,
           महकेगी धरा फिर से।

कल फिर 
कलरव की मधुर ध्वनियां सुनाई पड़ेगी।
खगवृंद,हरते से लगेगे वेदना
         एक दूजे की,
        भूल कर पुरानी कटुता।
 

कल फिर 
झूकेगे वृक्ष फलों के बोझ से,
टहनियों तक लदे,
     बाँटने अपना मधु रस,
     हर पंथी को।
 

कल फिर
बहेगी सरिता कल कल निर्मल सी
अविराम,अविरल,
       बुझाने को पिपासा
       तोड़कर तटबंध ईर्ष्या के।

कल फिर
सजेगी चौपाल,
घर के बाहर के पीपल के नीचे
पूछने को हाल चाल पास पड़ोस का,
       उड़ाकर धुआँ कपट का
       चिलम भर।

कल फिर
लहलहायगी फसलें भावों की
अपनत्व की धूप पा
     भर कर प्रेम के क्षीर से।
      फिर से।

कल फिर
बढेगे हाथ उस ओर 
देने सहारा 
     लडखड़ाते पैरों को,
      हटाकर बैसाखियाँ बनावटी ।

कल फिर 
मिटेगा अँधेरा दिलों से
जलेगे दीये मिट्टी के
     हर घर की चौखट पर
      एक बार फिर से।
-०-
पता:
हेमराज सिंह
कोटा (राजस्थान)

-०-

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फायदे (लघुकथा) - ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'

 

फायदे
(लघुकथा)
सार्वजनिक पार्क में योगराज 'अनुलोम-विलोम', 'कपाल-भाति',व 'सूर्य नमस्कार प्राणायाम' करके उठा ही  था कि उसके पास दस वर्षीय बालक आदित्य आया। नमस्कार करके उसने पूछा, "अंकल जी ! मैं आपके सामने वाली बेंच पर बैठा आपको प्राणायाम करते हुए देख रहा था। प्राणायाम  करने से क्या लाभ हैं तथा इनके करने की विधि क्या है? क्या आप मुझे ये प्राणायाम करना सिखा सकते हैं ?"
क्यों नहीं बेटे ? यदि तुम्हारी इच्छा है तो मैं तुम्हें अवश्य सिखाऊँगा,पर पहले तुमअपना नाम बताओ, कहाँ रहते हो ,किसके साथ पार्क में सैर करने के लिए आए हो ? ये तो बताओ ।"
"ठीक है अंकल जी' मेरा नाम आदित्य है। हमारा घर पास में ही है। मैं अपनी मम्मी के साथ पार्क में प्रति दिन सैर करने के लिए आता हूँ।वहाँ सामने देखो मम्मी बेंच पर बैठी हुई हमें बातें करते हुए देख रही है। मैं उनसे पूछ कर ही आपके पास आया हूँ।"
"बहुत अच्छा बेटे आदित्य ,तुम तो बड़े स्मार्ट ,होशियार और तेजस्वी हो। 'यथा नाम तथा गुण '। आदित्य का अर्थ सूर्य होता है। बेटे, प्राणायाम करने के बहुत फ़ायदे हैं।शरीर स्वस्थ,
ऊर्जावान,स्फूर्तिवान ,लचीला,और बलवान होता है।मनोबल बढ़ता है,बुद्धि तेज होती है,मन में साहस का संचार होता है और आत्मोन्नति होती है।"
" ठीक है अंकल जी, फिर आप मुझे प्राणायाम करना सिखाइए।"
"बेटे,आज तो समय हो चुका है। कल से आपको सिखाऊँगा। आप  ठीक समय आ जाना।"
"अच्छा प्रणाम।"
"आशीर्वाद।"
-०-
पता-
ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'
सिरसा (हरियाणा)
-०-

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लोग सब (ग़ज़ल) - नदीम हसन चमन

 

लोग सब
(ग़ज़ल)
लोग सब फूल वाले ख़ार समझते थे
कैसे पत्थरों को वफ़ादार समझते थे

इक पाया मैं भी हूँ मेरी भूल निकली
मुझे लोग रास्ते की दीवार समझते थे

हवा चराग़ की कुर्बानी से जल उठेगी
सितारे चाँद को गुनाहगार समझते थे

आवाज़ बग़ावत की रोज़ क़त्ल होती
तू ज़िंदा है वो तो शिकार समझते थे

इक वो ईमान हक़ इंसाफ का दौर था
बंटवारे को लोग अपनी हार समझते थे

उठा अपनी लाश चल निकल नदीम
वे चेहरे नहीं जो जांनिसार समझते थे
-०-
पता
नदीम हसन चमन
गया (बिहार) 
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जिंदगी (कविता) - गोरक्ष जाधव

जिंदगी
(कविता) 
जिंदगी आसान-सी है और हसीन-सी है,
हम ही उसे मुश्किल बना देते हैं।

कभी अनगिनत इच्छाओं के कारण,
कभी अनचाहे ढकोसलों के कारण,
कभी विकलांग कर्मों के कारण,
कभी भ्रमित भ्रमों के कारण,

हम ही उसे मुश्किल बना देते हैं।
वरना जिंदगी आसान-सी है और हसीन-सी है।

कभी प्रलोभित संग्रह के कारण,
कभी आंतरिक संघर्ष के कारण,
कभी अहंता अश्व पर सवार होकर,
कभी अकल्पित कल्पनाओं भार लेकर,

हम ही उसे मुश्किल बना देते हैं।
वरना जिंदगी आसान-सी है और हसीन-सी है।

जिंदगी प्रेम का धाम है,
जिंदगी सुनहरी भोर और मधुरम शाम है,
जिंदगी विश्राम का विश्राम है,
जिंदगी अंत का विराम है,

हम ही उसे मुश्किल बना देते हैं।
वरना जिंदगी आसान-सी है और हसीन-सी है।

जिंदगी साँसों की यातायात हैं,
जिंदगी धड़कनों की कायनात हैं,
जिंदगी रूह की जादूगरी है,
जिंदगी ईश्वर की बाजीगरी है,

हम ही उसे मुश्किल बना देते हैं।
वरना जिंदगी आसान-सी है और हसीन-सी है।
-०-
गोरक्ष जाधव 
मंगळवेढा (महाराष्ट्र)
 

-०-




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