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Tuesday 29 September 2020

कान्हा मेरा (कविता) - लक्ष्मी बाकेलाल यादव


कान्हा मेरा
(कविता)
कान्हा मेरा बड़ा ही नटखट
रुप-रंगीला, छैल-छबिला
मोरपखा सिर ऊपर राखे
चोरी-छुपे वह माख़न चाखे
गोपियों संग मिल हमजोली
खेले वह आंख-मिचौली
बासुरी की धुन मनोहर
राधा का वह प्रिय मुरलीधर
श्यामरंग मेघ घटा सी सुंदर
चमक है बिजली से बढ़कर
चार भुजाएं अतिशोभित 
चक्र,पद्म,शंख,गदा से विभूषित
तरूण पिताम्बरधारी केशव
वनमालाएं उसपर भाएं
मथुरा का कहलाए पालनहारी
ऐसा है हमारा यह कृष्णबिहारी...
***
पता:
लक्ष्मी बाकेलाल यादव
सांगली (महाराष्ट्र)

-०-



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1 comment:

  1. सुन्दर रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई है प्रिय!

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