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Wednesday, 15 April 2020

ह्रदय (कविता) - वाणी बरठाकुर 'विभा'

ह्रदय
(कविता) 
मेरे अंदर से
तू हर वक्त बतलाता
धड़कन बन
एहसास जताता
मैं जिन्दा हूँ,
सोचना समझना
कभी कई राह
तू ही दिखाया ।

मैं जानती हूँ
हृदय
यह तेरा ही खेल है
गम में आँसू
और खुशी में
मुस्कुराहट सजाना ।

तूने अटूट बंधन से
अटल विश्वास संग
हृदय से हृदय का
गठबंधन कर दिया
यह भी
मुझे पता है
यह तेरा ही खेल है
एक-दूसरे को
सुख दुख की सहभागी
बना डाला ।

आज अशांत हृदय
लाशों के ढेर देख
धीमी गति से
धड़क रहा
खुशियों के धागे
जैसे टूट गया।
मानव क्रंदन सुनकर
हृदय नाकाम हो चला ।
जब से न कर पाया
मुक्त मन से विचरण
गले लगाना
दूसरों के सुख-दुख में
एक होकर शामिल होना
हृदय चुपके से
आँसू बहाता ।

हृदय तू ही बता
एक बार ,
जो गलती प्रकृति पर
मानव ने की
उसके लिए
क्या देना है
दोषी और निर्दोष को
एक ही सजा !
एकबार जा
दरिंदों के अंदर
धड़कन बन
परिवर्तित कर
उनके हृदय ।
-०-
वाणी बरठाकुर 'विभा'
शोणितपुर (असम)

-०-

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सजल (कविता) - दिनेश कुमार चतुर्वेदी

सजल
(कविता)
जिंदगी खुद से लड़ी है कुछ करो
मौत भी पीछे पड़ी है कुछ करो
🔷
बाप-बेटे की नहीं पटती तनिक
आ गई कैसी घड़ी है कुछ करो
🔷
चाहने से कुछ नहीं मिलता यहाँ
सामने मंजिल खड़ी है कुछ करो
🔷
है पुजारी न्याय, करुणा, सत्य का
हाथ में पर हथकड़ी है कुछ करो
🔷
भूल बैठे राजनेता मार्ग शिव
कंस जैसी खोपड़ी है कुछ करो
🔷
बैठते हो हाथ धर के हर समय
भाग्य कर्मों से बना है कुछ करो
🔷
प्यार तो सुख का महल होता नहीं
दर्द की इक झोपड़ी है कुछ करो
🔷
चाहती बहना नहीं है अब नदी
बात पर अपनी अड़ी है कुछ करो
-०-

पता:
दिनेश कुमार चतुर्वेदी
खोखरा
जांजगीर चांपा (छत्तिसगढ़)


-०-

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राजा का ऐलान (बाल कविता) - श्रीमती सुशीला शर्मा

राजा का ऐलान
(बाल कविता)
जंगल के राजा ने कर दिया
एक बड़ा ऐलान
शहर ना जाएगा अब कोई
तभी बचेगी जान ।

कचरा गलियों में फैला है
पेड़ ना कोई वहाँ बचा है
ऑक्सीजन की मारामारी
फैल रही लाखों बीमारी ।

आँखों में चश्मा पहना है
मुँह में सबके मास्क लगा है
तरह-तरह की हैं महामारी
जिससे मर रही जनता सारी ।

जंगल हमें बचाना है
मानव के पास ना जाना है
यदि वहाँ तुम जाओगे
अपनी जान गँवाओगे ।

सबने मिलकर ठानी है
राजा की बात भी मानी है
शहर ना जाएगा अब कोई
सबको जान बचानी है ।
-०-
पता:
श्रीमती सुशीला शर्मा 
जयपुर (राजस्थान) 
-०-


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