हारे हुए को
(कविता)
हारे हुए को जंग में हराया नहीं करते ।।
वो तो अपने ही थे, जो नश्तर चुभा गए हमको
गर्मी खून की यूँ बेवजह दिखाया नहीं करते ।।
हारे हुए को जंग में हराया.................
जो सहते हैं दुनिया के जुल्मों सितम हंस कर
वो सिकंदर हैं ,मुंह से आह तक किया नहीं करते ।।
हारे हुए को जंग में हराया.................
हमने तो सीख लिया हंसना गमों के समंदर में भी
ये आंसू मोती हैं यूं बेवजह बहाया नहीं करते।।
हारे हुए को जंग में हराया.................
जल भी जाए गर हाथ जो जलते चिरागो से कभी
रोशन दियो को हम कभी बुझाया नहीं करते ।।
हारे हुए को जंग में हराया.................
हाकिम कब तलक ढहाता है जुल्म देखूं तो सही
सच्चाई की राह में कदम पीछे हटाया नहीं करते।।
हारे हुए को जंग में हराया.................
-०-
***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें