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Saturday, 22 February 2020

हारे हुए को (कविता) - राजीव कपिल

हारे हुए को
(कविता)
वो जो बहाते हैं लहू उनको कहें क्या ?
हारे हुए को जंग में हराया नहीं करते ।।

वो तो अपने ही थे, जो नश्तर चुभा गए हमको
गर्मी खून की यूँ बेवजह दिखाया नहीं करते ।।
हारे हुए को जंग में हराया.................

जो सहते हैं दुनिया के जुल्मों सितम हंस कर
वो सिकंदर हैं ,मुंह से आह तक किया नहीं करते ।।
हारे हुए को जंग में हराया.................

हमने तो सीख लिया हंसना गमों के समंदर में भी
ये आंसू मोती हैं यूं बेवजह बहाया नहीं करते।।
हारे हुए को जंग में हराया.................

जल भी जाए गर हाथ जो जलते चिरागो से कभी
रोशन दियो को हम कभी बुझाया नहीं करते ।।
हारे हुए को जंग में हराया.................

हाकिम कब तलक ढहाता है जुल्म देखूं तो सही
सच्चाई की राह में कदम पीछे हटाया नहीं करते।।
हारे हुए को जंग में हराया.................
-०-
पता:
राजीव कपिल
हरिद्वार (उत्तराखंड)

-०-

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सरस्वती पूजन का पर्व : बसंत पंचमी (कविता) - सुनील कुमार माथुर

सरस्वती पूजन का पर्व : बसंत पंचमी
(कविता)
आओ आओ बसंत
तुम्हारा स्वागत है
तुम्हारे आगमन पर
घर आगन में पुष्प खिले है
बच्चों में उत्साह उमडा है
आज मां सरस्वती का पूजन है
शिक्षा के पावन मंदिरों में
आज सर्वत्र उल्लास हैं
मां सरस्वती का पूजन कर
विधार्थी वर्ग
उच्च व आदर्श संस्कारों से युक्त
शिक्षा पाने को लालायित होते हैं
शिक्षक समुदाय
मां सरस्वती के आगे
संकल्प लेते है कि
हे सरस्वती माता
बच्चों को शिक्षा के प्रति
रूझान देना ताकि
वे शिक्षा प्राप्त कर
परिवार , समाज व राष्ट्र का
मान सम्मान बढाये और
शिक्षा के पावन मंदिर का
गौरव बढाये ताकि
शिक्षक समुदाय जो
भावी पीढी का
शिल्पकार कहलाता है
वह गर्व कर सके
अपने आदर्श विधार्थीयो पर
जिनके जीवन पर
शिक्षक समुदाय
अपने को गौरवान्वित
महसूस कर सकें
शिक्षा के पावन मंदिर में
मां सरस्वती का पूजन
विधा का पूजन है
जिस राष्ट्र में
मां सरस्वती का पूजन होता है
वह राष्ट्र साधन सम्पन्न
राष्ट्र कहलाता है
मां सरस्वती का पूजन
विधा का पूजन है
अतः
आओ बसंत पंचमी आओ
तुम्हारा स्वागत है
-०-
सुनील कुमार माथुर ©®
जोधपुर (राजस्थान)

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पछुआ हवाएं (कविता) - मीरा सिंह 'मीरा'

पछुआ हवाएं
(कविता)
बलखाती इठलाती
जुल्फें बिखराए
दौड़ती जा रही
पछुआ हवाएं
पूछे तो कोई
इन्हें क्या हुआ है
खौफ से क्यों
मन सिहरा है
चीखती चिल्लाती
बाहें फैलाए
दौड़ती जा रही
पछुआ हवाएं
थम तो जरा
अरी ओ बावरी
कुछ तो बता
कहां जा रही
सायं सायं करती
नागिन सी
फुंफकारती
दौड़ती जा रही
पछुआ हवाएं
शोर है कैसा
समझ नहीं आए
घिर घिर आई
काली घटाएं
कहना क्या चाहे
पछुआ हवाएं
कोई तो बताए
कोई समझाए ।
-०-पता: 
मीरा सिंह 'मीरा'


बक्सर (बिहार)


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एक राह के राही हम सब (कविता) - ज्ञानवती सक्सेना

एक राह के राही हम सब
(कविता)
एक राह के राही हम सब,
मंजिल सबकी जुदा जुदा
ठाट बाट यहीं रह जाएगा
स्टेशन जब आएगा
पैसा कौड़ी, अरब खरब पर, थैला साथ ना जाएगा
गहना -गांठा ,मोती माणक, लॉकर में रह जाएंगे
बेटा-बेटी, पोता-पोती
साथ कोई नाआएगा
लगे ठहाके पल दो पल के जो
यहाँ अक्स वो ही रह जाएगा काम जो आए कभी किसी के
वो ही तो गुण गाएगा
जो नई दिशा में पटरी बिछाकर इतिहास नया रच जाएगा
औरों के हित जिये मरे जो
मर के भी अमर हो जाएगा
एक राह के राही हम सब
मंजिल सबकी जुदा जुदा
ठाट-बाट यहीं रह जाँएगे
स्टेशन जब आएगा
-०-
पता : 
ज्ञानवती सक्सेना 
जयपुर (राजस्थान)
-०-

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मर्यादा को हमसे समझो (कविता) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'


मर्यादा को हमसे समझो 
(कविता)
मर्यादा को कैसे कोई ,
तज अपने जीवन में रोता।
मर्यादा को हमसे समझो,
मर्यादित जीवन क्या होता।।
*****
कर्तव्यों के प्रति सजगता ,
से जीवन सुखमय होता है।
संस्कारों के बीज मनुज ही,
अपनी संतति में बोता है ।।
सावधानी से कदम बढ़ाकर ,
जो अपने दायित्व निभाता ।
वहीं मनुज दिल में घर करता,
युगों युगों तक पूजा जाता ।।
सही रास्ता मंजिल का जो,
अपनाता वो कभी न रोता ।
मर्यादा को हमसे समझो ,
मर्यादित जीवन क्या होता ।।
*****
वृद्धजनों का मान करें हम,
मर्यादा हमको सिखलाती।
वृद्ध कौन है खोलखोल कर,
हमें जिंदगी में समझाती ।।
आयु,बल,पद,विद्या,धन से ,
जो है बड़ा वृद्ध हम मानें ।
ध्यान रखें अपने कत्यों से,
दिल न दुखे जाने अनजाने।।
कद्र हमेशा हर दादा की ,
करता दिखे हमें हर पोता ।
मर्यादा को हमसे समझो ,
मर्यादित जीवन क्या होता ।।
******
बचें सदा हम बदफैलों से.
ईश्वर भी हमसे राजी हो ।
जो न करने योग्य ना करें ,
तो अपने हित में बाजी हो।।
मान प्रतिष्ठा सदा बचाएं,
कोई ना हमको ललचाए ।
सीमा में जो रहे वही तो ,
पुरुषों में उत्तम के लाए ।।
प्रभु प्रसाद है मर्यादा तो ,
मर्यादा तो काफिर खोता ।
मर्यादा को हमसे समझो,
मर्यादित जीवन क्या होता ।।
******
सब भूलों को माफ करें हम,
कभी किसी को ना दुत्कारें ।
मधुर वचन से जीतें दिल को ,
सुखमय जीवन सदा संवारें ।।
मिले रहें मन से मन अपने,
उन्नति पथ पर कदम बढ़ाएं ।
सबके साथ साथ अपना भी,
भला करें तो जीवन पाएं ।।
"अनन्त" बाधाओं को लांघें,
गफलत में ना खाएं गोता ।
मर्यादा को हमसे समझो ,
मर्यादित जीवन क्या होता।।
-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
नीमच (मध्यप्रदेश)
-०-

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