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Saturday, 22 February 2020

मर्यादा को हमसे समझो (कविता) - अख्तर अली शाह 'अनन्त'


मर्यादा को हमसे समझो 
(कविता)
मर्यादा को कैसे कोई ,
तज अपने जीवन में रोता।
मर्यादा को हमसे समझो,
मर्यादित जीवन क्या होता।।
*****
कर्तव्यों के प्रति सजगता ,
से जीवन सुखमय होता है।
संस्कारों के बीज मनुज ही,
अपनी संतति में बोता है ।।
सावधानी से कदम बढ़ाकर ,
जो अपने दायित्व निभाता ।
वहीं मनुज दिल में घर करता,
युगों युगों तक पूजा जाता ।।
सही रास्ता मंजिल का जो,
अपनाता वो कभी न रोता ।
मर्यादा को हमसे समझो ,
मर्यादित जीवन क्या होता ।।
*****
वृद्धजनों का मान करें हम,
मर्यादा हमको सिखलाती।
वृद्ध कौन है खोलखोल कर,
हमें जिंदगी में समझाती ।।
आयु,बल,पद,विद्या,धन से ,
जो है बड़ा वृद्ध हम मानें ।
ध्यान रखें अपने कत्यों से,
दिल न दुखे जाने अनजाने।।
कद्र हमेशा हर दादा की ,
करता दिखे हमें हर पोता ।
मर्यादा को हमसे समझो ,
मर्यादित जीवन क्या होता ।।
******
बचें सदा हम बदफैलों से.
ईश्वर भी हमसे राजी हो ।
जो न करने योग्य ना करें ,
तो अपने हित में बाजी हो।।
मान प्रतिष्ठा सदा बचाएं,
कोई ना हमको ललचाए ।
सीमा में जो रहे वही तो ,
पुरुषों में उत्तम के लाए ।।
प्रभु प्रसाद है मर्यादा तो ,
मर्यादा तो काफिर खोता ।
मर्यादा को हमसे समझो,
मर्यादित जीवन क्या होता ।।
******
सब भूलों को माफ करें हम,
कभी किसी को ना दुत्कारें ।
मधुर वचन से जीतें दिल को ,
सुखमय जीवन सदा संवारें ।।
मिले रहें मन से मन अपने,
उन्नति पथ पर कदम बढ़ाएं ।
सबके साथ साथ अपना भी,
भला करें तो जीवन पाएं ।।
"अनन्त" बाधाओं को लांघें,
गफलत में ना खाएं गोता ।
मर्यादा को हमसे समझो ,
मर्यादित जीवन क्या होता।।
-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
नीमच (मध्यप्रदेश)
-०-

***
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