पछुआ हवाएं
(कविता)
बलखाती इठलाती
जुल्फें बिखराए
दौड़ती जा रही
पछुआ हवाएं
पूछे तो कोई
इन्हें क्या हुआ है
खौफ से क्यों
मन सिहरा है
चीखती चिल्लाती
बाहें फैलाए
दौड़ती जा रही
पछुआ हवाएं
थम तो जरा
अरी ओ बावरी
कुछ तो बता
कहां जा रही
सायं सायं करती
नागिन सी
फुंफकारती
दौड़ती जा रही
पछुआ हवाएं
शोर है कैसा
समझ नहीं आए
घिर घिर आई
काली घटाएं
कहना क्या चाहे
पछुआ हवाएं
कोई तो बताए
कोई समझाए ।
-०-पता:
बलखाती इठलाती
जुल्फें बिखराए
दौड़ती जा रही
पछुआ हवाएं
पूछे तो कोई
इन्हें क्या हुआ है
खौफ से क्यों
मन सिहरा है
चीखती चिल्लाती
बाहें फैलाए
दौड़ती जा रही
पछुआ हवाएं
थम तो जरा
अरी ओ बावरी
कुछ तो बता
कहां जा रही
सायं सायं करती
नागिन सी
फुंफकारती
दौड़ती जा रही
पछुआ हवाएं
शोर है कैसा
समझ नहीं आए
घिर घिर आई
काली घटाएं
कहना क्या चाहे
पछुआ हवाएं
कोई तो बताए
कोई समझाए ।
-०-पता:
मीरा सिंह 'मीरा'
बक्सर (बिहार)
***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें
वाह
ReplyDelete