नफरतों से
(कविता)
नफरतों से हमारी रगो में उबाल क्यों नहीं,
बढ़ती हरकतों पर हमारे बीच सवाल क्यों नहीं।।
इन कौमी हमले पर जरा मलाल क्यों नहीं,
शर्मनाक हिंसा पर दुनिया में बवाल क्यों नहीं।।
नफरतों के बीज से आतंक ही होगा पैदा,
तुम अपने आप से पूछते सवाल क्यों नहीं।
जिस माटी का खाया नमक, हक़ अदा करो,
नमक हराम क्यों नमक हलाल क्यों नहीं।।
पेरिस के हमलों में लहुं में उबाल क्यों नहीं
दिलों में नफरत पर दुनिया मे सवाल क्यों नहीं।।
मुह में राम बगल में छुरी ऐसे में सवाल क्यों नहीं।
हवाओ में नफरत घोलनें पर बवाल क्यों नहीं।
ये इंसानियत का क़त्ल है जेहन में सवाल क्यों नहीं
अगली नस्ल क्या सीखेगी तुम्हे मलाल क्यों नहीं।।
-०-
बढ़ती हरकतों पर हमारे बीच सवाल क्यों नहीं।।
इन कौमी हमले पर जरा मलाल क्यों नहीं,
शर्मनाक हिंसा पर दुनिया में बवाल क्यों नहीं।।
नफरतों के बीज से आतंक ही होगा पैदा,
तुम अपने आप से पूछते सवाल क्यों नहीं।
जिस माटी का खाया नमक, हक़ अदा करो,
नमक हराम क्यों नमक हलाल क्यों नहीं।।
पेरिस के हमलों में लहुं में उबाल क्यों नहीं
दिलों में नफरत पर दुनिया मे सवाल क्यों नहीं।।
मुह में राम बगल में छुरी ऐसे में सवाल क्यों नहीं।
हवाओ में नफरत घोलनें पर बवाल क्यों नहीं।
ये इंसानियत का क़त्ल है जेहन में सवाल क्यों नहीं
अगली नस्ल क्या सीखेगी तुम्हे मलाल क्यों नहीं।।
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