निर्जन अपनी रातों को
(गीत)
जब खंगाला हमने अपने,
अनुबंधों के खातों को।
पृष्ठ पृष्ठ पर पाया केवल,
घातों अरु प्रतिघातों को।
प्रथम पंक्ति में सदा खड़ा था,
जीवन की हर मुश्किल में।
फिर भी फ़ांस नही निकली थी,
फंसी हुई थी जो दिल में।
मेरा झुकना रास न आया,
फिर भी पाया लातों को।
जहाँ जहाँ उनके कदम पड़े थे
खूब बिछाया फूलों को।
रिश्तों की खातिर तो हमने,
छोड़ा सभी उसूलों को।
मात्र खिलौना ही समझा था,
मेरे भी जज्बातों को।
पास फटकने नहीं दिया था,
जीवन में अवरोधों को।
धारण कण्ठ किया था हमने,
इस जग के प्रतिशोधों को।
नहीं धरातल दे पाये वो,
मेरी कोमल बातों को।
जला दिया था सिय के कारण
प्रतिबन्धों की लंका को।
भले पूँछ में आग लगी थी,
निर्मूल किया शंका को।
अवध सो गई उनकी चिंता,
निर्जन अपनी रातों को।
अनुबंधों के खातों को।
पृष्ठ पृष्ठ पर पाया केवल,
घातों अरु प्रतिघातों को।
प्रथम पंक्ति में सदा खड़ा था,
जीवन की हर मुश्किल में।
फिर भी फ़ांस नही निकली थी,
फंसी हुई थी जो दिल में।
मेरा झुकना रास न आया,
फिर भी पाया लातों को।
जहाँ जहाँ उनके कदम पड़े थे
खूब बिछाया फूलों को।
रिश्तों की खातिर तो हमने,
छोड़ा सभी उसूलों को।
मात्र खिलौना ही समझा था,
मेरे भी जज्बातों को।
पास फटकने नहीं दिया था,
जीवन में अवरोधों को।
धारण कण्ठ किया था हमने,
इस जग के प्रतिशोधों को।
नहीं धरातल दे पाये वो,
मेरी कोमल बातों को।
जला दिया था सिय के कारण
प्रतिबन्धों की लंका को।
भले पूँछ में आग लगी थी,
निर्मूल किया शंका को।
अवध सो गई उनकी चिंता,
निर्जन अपनी रातों को।
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