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Saturday, 31 October 2020

तीर है (ग़ज़ल) - डा. जियाउर रहमान जाफरी

  

तीर है
(ग़ज़ल)
इस तरफ  भी तीर है 
मसअला गंभीर     है 

मुश्किलें जितनी  रहें 
हाथ में  तदबीर     है 

तोडना ही है       उसे 
हाँ मगर  ज़ंजीर      है 

मुस्कुराहट  होंठ     पर 
और  दिल  में पीर    है 

हर  ग़ज़ल रोती     रही 
क्या  यही तदबीर    है 

शेर अब  उससे    बढ़े 
कौन रांझा    हीर    है 

मसअले सब   हल हुए 
आज  पानी   थीर    है 
-0-
-डा जियाउर रहमान जाफरी ©®
नालंदा (बिहार)



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इस बार दीवाली पर (लघुकथा) - टीना रावल

 

 इस बार दीवाली पर
(लघुकथा)
"अंजली! आ गई तू,  कैसी है ? और घर में सब ठीक तो है " मेधा ने पॉर्च के बेंच पर आकर बैठी अंजलि से पूछा। 
"हां आंटी जी...... सब ठीक है। पर अब केवल छह घर ही हैं काम के,  तो तंगी रहती ही है।"  अंजलि ने उदासी से कहा। 
अंजलि मेधा के घर डेढ़ साल से काम कर रही थी,  जरूरत पड़ने पर उसके चार साल के बेटे को कभी संभाल भी लेती थी। पर लॉक डाउन होने के बाद मेधा को उसे काम पर नहीं आने को कहना पड़ा। 
"अंजलि,  मैं सुरक्षा कारणों से तुम्हें अभी काम पर नहीं बुला सकती,  मैं स्वयं कर रही हूं । बस,  दीवाली पर तुम तीनों भाई बहन के लिए नए कपड़े और मिठाई के लिए पैसे देने ही बुलाया था।
"लेकिन आंटी जी, आपने लॉकडाउन में भी दो महीने की तनख्वाह बिना काम की दी थी । अब यह और....  अच्छा नहीं लग रहा। बहुत सारे लोगों ने तो सफाई में निकले पुराने कपड़े और बेकार सामान दिए हैं जिसे हमारे एक कमरे के घर में रखने की जगह भी नहीं है।" अंजलि ने दुख से कहा।
"कोई बात नहीं बेटा,  मुश्किल वक्त है सावधानी से निकल ही जाएगा,  यह लो पकड़ो।  मेधा ने प्यार से बेग पकड़ा दिया। 
इस बार सबके लिए सोचना है किसी के भी घर सूनी या फीकी  दिवाली न मने।
-०-
पता:
टीना रावल
जयपुर (राजस्थान)

 

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'यह इंदु अमृत रस टपकाये' (कविता) - रजनीश मिश्र 'दीपक'

 

'यह इंदु अमृत रस टपकाये'
(कविता)

शरद पूर्णिमा का यह इंदू
अमृत रस टपकाये।
लक्ष्मी जन्म दिवस का यह दिन
अनुपम खुशियाँ लाये।
माँ लक्ष्मी की कृपा से
मधुर मिलन हो हर घर आंगन,
माता शिक्षा स्वास्थ्य और सम्पन्नता
घर घर में बरसायें।
भव्य दिव्य हो हर वन उपवन
प्रेम से महके हर तन मन,
खिल कर हर प्राणी का मन
स्वर गीत सुमधुर गुनगुनायें।
न हो गृह कलेश कहीं भी
न मन में रहे किसी के कटुता,
गृहणियां प्रेम का मधुरस मिलाकर
घर घर खीर बनायें।
फिर छत पर रख
इन्दु रश्मियों का अमृत रस भर इसमें,
अपने घर के हर प्रिय जन को
यह पियूष प्रसाद खिलायें।
दीपक करते आपसे प्रार्थना
हे जगतपाल लक्ष्मीनारायण,
आपकी कृपा से यह स्वर्ग
इस वसुंधर पर उतर आये। ।
-०-

पता 

रजनीश मिश्र 'दीपक'
शाहजहांपुर (उत्तरप्रदेश)

-०-



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स्पर्श (कविता) - सुशांत सुप्रिय

स्पर्श
(कविता)
धूल भरी पुरानी किताब के
उस पन्ने में
बरसों की गहरी नींद सोया
एक नायक जाग जाता है
जब एक बच्चे की मासूम उँगलियाँ
लाइब्रेरी में खोलती हैं वह पन्ना
जहाँ एक पीला पड़ चुका
बुक-मार्क पड़ा था

उस नाज़ुक स्पर्श के मद्धिम उजाले में
बरसों से रुकी हुई एक अधूरी कहानी
फिर चल निकलती है
पूरी होने के लिए

पृष्ठों की दुनिया के सभी
अपनी देह पर उग आए
खर-पतवार हटा कर

जैसे किसी भोले-भाले स्पर्श से
मुक्त हो कर उड़ने के लिए
फिर से जाग जाते हैं
पत्थर बन गए सभी शापित देव-दूत
जैसे जाग जाती है
हर कथा की अहिल्या
अपने राम का स्पर्श पा कर
-०-
पता:
सुशांत सुप्रिय
ग़ाज़ियाबाद (उत्तरप्रदेश)

-०-



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