(ग़ज़ल)
इस तरफ भी तीर है
मसअला गंभीर है
मुश्किलें जितनी रहें
हाथ में तदबीर है
तोडना ही है उसे
हाँ मगर ज़ंजीर है
मुस्कुराहट होंठ पर
और दिल में पीर है
हर ग़ज़ल रोती रही
क्या यही तदबीर है
शेर अब उससे बढ़े
कौन रांझा हीर है
मसअले सब हल हुए
आज पानी थीर है
हार्दिक बधाई है आदरणीय ! सुन्दर रचना के लिये।
ReplyDeleteसुंदर अशआर
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