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Monday, 5 October 2020

बेटी (कविता) - अतुल पाठक 'धैर्य'

बेटी
(कविता)
स्वागत के साथ आने दो बेटी,
घर-घर में भाग्य लाती है बेटी।

मुस्काए तो लगती सुमन बेटी,
अंधकार में उजाले की किरण बेटी।

चिड़िया की तरह चहकती है बेटी,
पढ़लिख कर इतिहास रचती है बेटी।

निश्चल मन उसका नदी जैसा,
नाज़ों से पालो परी होती बेटी।

बेटे की तरह पढ़ाओ बेटी,
कम न कभी आँको बेटी।

सुख का नया सवेरा लाती बेटी,
आशा का दीप नित जलाती बेटी।

थककर आएं पिता जब घर पर,
दौड़कर जलपान कराती बेटी।

बड़े जब ध्यान न रखें अपना,
खूब डाँट लगाती बेटी।
-०-
पता: 
अतुल पाठक  'धैर्य'
जनपद हाथरस (उत्तरप्रदेश)

-०-

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अब तुमको लड़ना ही होगा (कविता) - अजय कुमार व्दिवेदी

 

अब तुमको लड़ना ही होगा
(कविता)
मृत सभा में बार बार यूं न्याय न्याय चिल्लाने से।
किसी को न्याय मिला है क्या यूं अश्रु व्यर्थ बहाने से।

न्याय तुम्हें यदि लेना हो तो नेत्रों में अंगार भरो।
बनकर लक्ष्मीबाई अपने हाथों में तलवार धरो।

हर मोड़ पर तुम्हें यहां एक दुर्योधन मिल जायेगा।
दुशासन का हाथ तुम्हारे आंचल तक बढ़ जायेगा।

सभा है ये अन्धों की यहाँ पर भीष्म मौन रह जायेगा।
कृपाचार्य और गुरू द्रोण कोई कुछ नहीं कह पायेगा।

ना अब लाज बचाने वाला केशव यहां पर आयेगा।
ना ही अब कुरूक्षेत्र में गांण्डिव कोई उठायेगा।

अपना अस्तित्व बचाने को तुमको ही कुछ करना होगा।
इन दुष्ट दुराचारी लोगों से तुमको ही लड़ना होगा।

यह मृत सभा है अंधों कि यहां जीवित सब पाषाण पड़े। 
द्रौपदी चीर हरण को सब देखेंगे बस चुपचाप खड़े। 

हे नारी तुम दुर्गा बन अब दुष्टों का संघार करों।
एक हाथ में खप्पर लेलो एक हाथ में खड़ग धरो।

तुम ही शस्त्र उठाओ अब हुंकार तुम्हें भरना होगा। 
इस कलयुगी दुर्योधन का अब वध तुमको करना होगा। 
-०-
अजय कुमार व्दिवेदी
दिल्ली
-०-


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मैंने सबसे कहा (कविता) - डा. जियाउर रहमान जाफरी

 

मैंने सबसे कहा
(कविता)
मैंने मछुआरे से कहा 
तुम्हें मछलियां नहीं पकड़नी चाहिए 
जैसे तुम नहीं पकड़ते हो 
अपने खेलते हुए बच्चों को 
मैंने बहेलिये से कहा 
तुम्हें बूटी भर गोश्त के लिए 
नहीं करना चाहिए चिड़ियों का शिकार 
जैसे डरते हो तुम 
शेर का शिकार हो जाने से 
मैंने कसाई से कहा 
तुम्हें अबोध और बेज़ुबान 
पशुओं का नहीं करना चाहिए क़त्ल 
जैसे 
साये में छुपाते रहते हो तुम अपने औलाद को 
मैंने सबसे कहा 
पर हत्या फिर भी हुई 
बलि फिर भी  दी गई 
और आकाश में उड़ते चिड़ियों के 
पर फिर भी काट दिए गये 
पर हम कहते रहे 
जैस अपनी ज़िद से जलता रहा एक दिया 
जैसे एक जुगनू देता  रहा  रौशनी 
जैसे एक दूब
उगता रहा अपनी कोशिशों से 
जैसे पिंजड़े में क़ैद परिंदे 
लड़ते रहे आख़री दम तक बंदिशों से... 
-0-
-डा जियाउर रहमान जाफरी ©®
नालंदा (बिहार)



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