अब तुमको लड़ना ही होगा
(कविता)
मृत सभा में बार बार यूं न्याय न्याय चिल्लाने से।
किसी को न्याय मिला है क्या यूं अश्रु व्यर्थ बहाने से।
न्याय तुम्हें यदि लेना हो तो नेत्रों में अंगार भरो।
बनकर लक्ष्मीबाई अपने हाथों में तलवार धरो।
हर मोड़ पर तुम्हें यहां एक दुर्योधन मिल जायेगा।
दुशासन का हाथ तुम्हारे आंचल तक बढ़ जायेगा।
सभा है ये अन्धों की यहाँ पर भीष्म मौन रह जायेगा।
कृपाचार्य और गुरू द्रोण कोई कुछ नहीं कह पायेगा।
ना अब लाज बचाने वाला केशव यहां पर आयेगा।
ना ही अब कुरूक्षेत्र में गांण्डिव कोई उठायेगा।
अपना अस्तित्व बचाने को तुमको ही कुछ करना होगा।
इन दुष्ट दुराचारी लोगों से तुमको ही लड़ना होगा।
यह मृत सभा है अंधों कि यहां जीवित सब पाषाण पड़े।
द्रौपदी चीर हरण को सब देखेंगे बस चुपचाप खड़े।
हे नारी तुम दुर्गा बन अब दुष्टों का संघार करों।
एक हाथ में खप्पर लेलो एक हाथ में खड़ग धरो।
तुम ही शस्त्र उठाओ अब हुंकार तुम्हें भरना होगा।
इस कलयुगी दुर्योधन का अब वध तुमको करना होगा।
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अजय कुमार व्दिवेदी
अजय कुमार व्दिवेदी
दिल्ली
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बाह! बाह! क्या रचना रची है आपने, आपको हार्दिक हार्दिक बधाई है मान्यवर। बहुत घोर अंधेरा छाता जा रहा है।
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