(मुक्तक कविता)
इस बार ज्योंही
दीपावली के दिए जले
हम सपनों के पंख लगा कर
उल्लू से जाकर मिले
अभी जगे ही थे
नित्य क्रिया में लगे ही थे
रात हुई
बात हुई
हमने कहा -
भैया जी सुनो
अबकी बार कुछ नया रास्ता चुनो
तुम जहां जहां लक्ष्मी को ले जाओगे
वही तो जाएंगी
और क्या पैदल चल पाएंगी
जिन जिन पर उनकी कृपा होती है
वे खुशियों में डूब जाते हैं
और
गरीबों को आप का पट्ठा बताते हैं
हम सपनों के पंख लगा कर
उल्लू से जाकर मिले
अभी जगे ही थे
नित्य क्रिया में लगे ही थे
रात हुई
बात हुई
हमने कहा -
भैया जी सुनो
अबकी बार कुछ नया रास्ता चुनो
तुम जहां जहां लक्ष्मी को ले जाओगे
वही तो जाएंगी
और क्या पैदल चल पाएंगी
जिन जिन पर उनकी कृपा होती है
वे खुशियों में डूब जाते हैं
और
गरीबों को आप का पट्ठा बताते हैं
इस बार करो एक काम
जातिवादी बनकर
कमा लो कुछ नाम
सारे नेतागण
यही तो कर रहे हैं
कुर्सियों पर बैठ कर
अवसरवाद की घास कर रहे हैं
जैसा देश वैसा भेष
ना कोई झगड़ा ना कोई क्लेश
और फिर तुम तो ठहरे
अंधेरे के सौदाई
प्रकाश से क्या काम है भाई
इस बार
जातिवादी बनकर
कमा लो कुछ नाम
सारे नेतागण
यही तो कर रहे हैं
कुर्सियों पर बैठ कर
अवसरवाद की घास कर रहे हैं
जैसा देश वैसा भेष
ना कोई झगड़ा ना कोई क्लेश
और फिर तुम तो ठहरे
अंधेरे के सौदाई
प्रकाश से क्या काम है भाई
इस बार
लक्ष्मी जी की बात पर ना जाइए
हमारी तंग अंधेरी
गलियों की तरफ आइए
जब हम गरीबी से निजात पाएंगे
दोनों समय रोटियां खाएंगे
आपके गीत गाएंगे
-0-
हमारी तंग अंधेरी
गलियों की तरफ आइए
जब हम गरीबी से निजात पाएंगे
दोनों समय रोटियां खाएंगे
आपके गीत गाएंगे
-0-
कुँवर वीर सिंह 'मार्तण्ड'
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