अब लिखती नहीं कविताएँ
(कविता)
कि आज कल मैं
लिखती नहीं हूँ कविताएँ
क्योंकि रोप दिए हैं मैंने
उसके नन्हे बीजों को
अपने हृदय की उर्वरक भूमि में ।
जहाँ निकलते हैं रोज नाजुक से कोंपल,
क्योंकि रोप दिए हैं मैंने
उसके नन्हे बीजों को
अपने हृदय की उर्वरक भूमि में ।
जहाँ निकलते हैं रोज नाजुक से कोंपल,
चटकती हैं कलियाँ और खिलते हैं फूल
फिर महक सी जाती हूँ मैं
चम्पा और गेंदे की खुशबु से ।
सूरज की नन्ही सी
किरणें खेलती है जब उन पंखुड़ियों से
और सहलाती है शब्दों की
नई किसी पौध को
तो खिल सी जाती हूँ मैं और
फिर नहीं लिखती हूँ कविताएँ
रोप देती हूँ भावों को
देती हूँ पनपने
गुलमोहर की लताओं को
देखती हूँ छुप कर
आता है चन्दा
उतरता है पालकी से
और बिखेरता है रंग उन
नन्हे कोंपलों पर ।
और मैं मूंद लेती हूँ आँखे
बहने देती हूँ शब्दों को
अपनी ही सुगंधित बयार में
कई बार चुपके से आती है लहरें
छुप कर अपनी सखी नदियोंसे
और निखार देती भावों की
कच्ची पंखुड़ियों को
धो देती है उन पर पड़े निर्थक
जज्बातों को ।
हाँ , अब लिखती नहीं हूँ
कविताएँ, देती हूँ उन्हें
पनपने और खिल कर निखरने ।
फिर ....
उन्हें हौले से तोड़ कर
बनाती हूँ कोमल भावों की
एक खूबसूरत गुलदस्ते को।
-0-
फिर महक सी जाती हूँ मैं
चम्पा और गेंदे की खुशबु से ।
सूरज की नन्ही सी
किरणें खेलती है जब उन पंखुड़ियों से
और सहलाती है शब्दों की
नई किसी पौध को
तो खिल सी जाती हूँ मैं और
फिर नहीं लिखती हूँ कविताएँ
रोप देती हूँ भावों को
देती हूँ पनपने
गुलमोहर की लताओं को
देखती हूँ छुप कर
आता है चन्दा
उतरता है पालकी से
और बिखेरता है रंग उन
नन्हे कोंपलों पर ।
और मैं मूंद लेती हूँ आँखे
बहने देती हूँ शब्दों को
अपनी ही सुगंधित बयार में
कई बार चुपके से आती है लहरें
छुप कर अपनी सखी नदियोंसे
और निखार देती भावों की
कच्ची पंखुड़ियों को
धो देती है उन पर पड़े निर्थक
जज्बातों को ।
हाँ , अब लिखती नहीं हूँ
कविताएँ, देती हूँ उन्हें
पनपने और खिल कर निखरने ।
फिर ....
उन्हें हौले से तोड़ कर
बनाती हूँ कोमल भावों की
एक खूबसूरत गुलदस्ते को।
-0-
सत्या शर्मा 'कीर्ति'
डी - 2 , सेकेंड फ्लोर महाराणा अपार्टमेंट,
पी. पी.कम्पाउंड, रांची - 834001 (झारखण्ड)
ईमेल:--satyaranchi732@gmai.com
डी - 2 , सेकेंड फ्लोर महाराणा अपार्टमेंट,
पी. पी.कम्पाउंड, रांची - 834001 (झारखण्ड)
ईमेल:--satyaranchi732@gmai.com
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