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Friday, 31 January 2020

मेरी बहन (कविता) - राजीव डोगरा


मेरी बहन
(कविता)
परियों के देश से आई
मेरी बहन।
चांद सितारों को साथ लाई
मेरी बहन।
घर में ढेरों खुशियां लाई
मेरी बहन।
हंसती है मुस्काती है
तो फूलों के जैसे खिल जाती है
मेरी बहन।
जब रोती है तो
लाल गुलाब जैसी हो जाती है
मेरी बहन।
रोज़ लड़ती,रोज़ झगड़ती
पर रूठ जाऊ तो
मुझको मना भी लेती है
मेरी बहन।
कभी मुझे हंसाती है
कभी रुलाती है,कभी सताती है
मेरी बहन।
जैसी भी है मेरी जैसी है
बहुत प्यारी है
मेरी बहन।
-०-
राजीव डोगरा
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
-०-




***
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गूँथ (कविता) - शिखा सिंह

गूँथ
(कविता)
एक स्त्री
जो गूँथ लेती है
सपने
मंगलसूत्र में
जो जिन्दगी बना कर
पहनती है
सारी उम्र इम्तहान
देने के लिये
कितनी परीक्षाओं का
सामना करना हैं
अभी उसे
ये वह खुद भी नही जानती
कितने ही अंधेरे हो
जाना उसी को है
परछाई ढूंढने के लिए
सोचती है
छाँव के भी पैर होते
आशाँ होती मेरे हाथ पकड़ने में
कठिन और दुर्गम रास्तों में
आग की रेखाओं से
खेलना बहुत बड़ा नही अब
झिरझिरी चादर सी
लगने लगी है
पत्थर भी लुड़कने लगे है अब
हमारी सहनशीलता को देख कर
कितनी गहरी हो गई है
स्त्री की सांसें?
पता ही नही चलता कि
मृत्यू के नजदीक है
या हर रिश्ते बचाने की
दीवार बनी है
कैसा विचित्रता भरा मंजर है
आगे खडा करना है उसे
अब भी पहले रिश्तों की दीर्घायु को
आज भी खामोश है
कहीं न कहीं
उस गुँथी हुई जिन्दगी के लिए!!
-०-
पता 
शिखा सिंह 
फतेहगढ़- फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)

-०-

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कब तक यूँ छलती जाओगी (कविता) - रीना गोयल

कब तक यूँ छलती जाओगी
(कविता)
पुरुषों की वीभत्स निगाहें ,कब तक बोलो सह पाओगी ।
हैवानों के बीच कहो तुम ,कहाँ सुरक्षित रह पाओगी ।

घाव किये कितने तन मन पर,चीख कहाँ कोई सुन पाया ।
वस्त्रहीन कर नोंच नोंच कर ,नारी का अस्तित्व मिटाया ।
बेलगाम अपराधी जग में ,तुम यूँ ही जलती जाओगी ।
हैवानों के बीच कहो तुम ,कहाँ सुरक्षित रह पाओगी ।

दुष्कर्मी को सजा हुई कब ,ना पेशी ना सुनवाई है ।
नर के हाथों छल प्रपंच में ,नारी ही छलती आयी है ।
निर्भय कर दो शत्रुदलन अब ,कब तक यूँ छलती जाओगी ।
हैवानों के बीच कहो तुम ,कहाँ सुरक्षित रह पाओगी ।
-०-
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)

-०-

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‘जन्मदिन तुम्हारा' (कविता) - रेशमा त्रिपाठी

‘जन्मदिन तुम्हारा' 
(कविता)
“ जन्मदिन हैं तुम्हारा, यह मेरा पैगाम हैं तुमको
जीना जिंदगी अपनी, सब कुछ भूल कर के तुम ।

अपने अरमानों को पूरा करना, हौंसलों से तुम
सब कुछ भूल करके, एक नई शुरुआत करना तुम ।

अनुभव के ज्ञान से , निष्कर्ष पर पहुँचना तुम
ज़िन्दगी का हर एहसास अपनी दृष्टि /दृष्टिकोण से देखना तुम ।


ओंस की बूंदों के जैसें, तुम ही गिरना ,तुम संभालना,
अपनी ही चेतना से तुमसब कुछ भूल कर के एक नई शुरुआत करना तुम ।

अब तक जो बितायी ज़िन्दगी, उसे याद रखना तुम
किन्तु खुद को मत मिटाना, यह सदैव याद रखना तुम ।

किसी के यादों में ,बातों में, नजरों में, अब उठने की कोशिश मत करना तुम
छोड़ दो रूठना, मनाना, जताना, अग्नि परीक्षा देना तुम ।

ज़िन्दगी एक सफर हैं ,अब किसी के लिए रुकना नहीं तुम
सब कुछ भूल कर, एक नई शुरुआत करना तुम ।

जन्मदिन तुम्हारा हैं यह मेरा पैंगाम हैं तुमको
जीना ज़िन्दगी अपनी, सब कुछ भूल कर के तुम ।
-०-
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

-०-

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कोहरे की चादर (कविता) - अंजलि गोयल 'अंजू'


कोहरे की चादर
(कविता)
कोहरे की चादर में लिपटा
सूरज भी शरमाता है,
नये साल का जश्न देखने
छिप छिप बाहर आता है।

जाड़े ने ली अँगड़ाई
सबको आँख दिखाता है,
सूरज को सहमा सा देखकर
उसको मुँह चिढ़ाता है,
चंदा भी तारों संग जाकर
दूर कहीं छिप जाता है,
नये साल का जश्न देखने
छिप छिप बाहर आता है।

कोई होटल कोई पिक्चर
क्लबों में कोई जाता है,
कोई घर में यारों संग,
कोई बाहर मौज मनाता है,
रात के बारह बजे भी
दिन सा नजर आता है,
नये साल का जश्न देखने
छिप छिप बाहर आता है।

स्कूलों की छुट्टी का सब
पूरा लुफ्त उठाते हैं,
नये साल का सेलेब्रेशन
मिल कर खूब मनाते हैं,
अपने अपने रंग में रंगा
हर कोई मस्ताता है,
नये साल का जश्न देखने
छिप छिप बाहर आता है।

अपने देश का कल्चर है जो
सबको गले लगता है,
देशी हो या विदेशी
त्यौहार सभी मनाता है,
बड़े प्यार से दुनिया पे ये
अपना रंग चढ़ाता है,
नये साल का जश्न देखने
छिप छिप बाहर आता है।
-०-
अंजलि गोयल 'अंजू'
बिजनौर (उत्तरप्रदेश)

-०-
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