कब तक यूँ छलती जाओगी
(कविता)
पुरुषों की वीभत्स निगाहें ,कब तक बोलो सह पाओगी ।
हैवानों के बीच कहो तुम ,कहाँ सुरक्षित रह पाओगी ।
घाव किये कितने तन मन पर,चीख कहाँ कोई सुन पाया ।
वस्त्रहीन कर नोंच नोंच कर ,नारी का अस्तित्व मिटाया ।
बेलगाम अपराधी जग में ,तुम यूँ ही जलती जाओगी ।
हैवानों के बीच कहो तुम ,कहाँ सुरक्षित रह पाओगी ।
दुष्कर्मी को सजा हुई कब ,ना पेशी ना सुनवाई है ।
नर के हाथों छल प्रपंच में ,नारी ही छलती आयी है ।
निर्भय कर दो शत्रुदलन अब ,कब तक यूँ छलती जाओगी ।
हैवानों के बीच कहो तुम ,कहाँ सुरक्षित रह पाओगी ।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुंदर सामयिक रचना
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