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Friday, 31 January 2020

कोहरे की चादर (कविता) - अंजलि गोयल 'अंजू'


कोहरे की चादर
(कविता)
कोहरे की चादर में लिपटा
सूरज भी शरमाता है,
नये साल का जश्न देखने
छिप छिप बाहर आता है।

जाड़े ने ली अँगड़ाई
सबको आँख दिखाता है,
सूरज को सहमा सा देखकर
उसको मुँह चिढ़ाता है,
चंदा भी तारों संग जाकर
दूर कहीं छिप जाता है,
नये साल का जश्न देखने
छिप छिप बाहर आता है।

कोई होटल कोई पिक्चर
क्लबों में कोई जाता है,
कोई घर में यारों संग,
कोई बाहर मौज मनाता है,
रात के बारह बजे भी
दिन सा नजर आता है,
नये साल का जश्न देखने
छिप छिप बाहर आता है।

स्कूलों की छुट्टी का सब
पूरा लुफ्त उठाते हैं,
नये साल का सेलेब्रेशन
मिल कर खूब मनाते हैं,
अपने अपने रंग में रंगा
हर कोई मस्ताता है,
नये साल का जश्न देखने
छिप छिप बाहर आता है।

अपने देश का कल्चर है जो
सबको गले लगता है,
देशी हो या विदेशी
त्यौहार सभी मनाता है,
बड़े प्यार से दुनिया पे ये
अपना रंग चढ़ाता है,
नये साल का जश्न देखने
छिप छिप बाहर आता है।
-०-
अंजलि गोयल 'अंजू'
बिजनौर (उत्तरप्रदेश)

-०-
***
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