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Friday, 24 July 2020

सुख - दुःख (कविता) - गिरधारी विजय अतुल


सुख - दुःख 

(कविता)
सुख-दुःख

बड़े दिनों बाद 
सुख के दरवाजे पर
दुःख की दस्तक हुई
यह देख सुख विचलित हुआ
थोड़ा घबराया
थोड़ा सहमा
माथे पर पसीना उतर आया
इतने दिन मजे में कट रहे थे
जीवन आनंद से परिपूर्ण था
जोश और उत्साह भरपूर था
मगर दुःख ने आकर
सब बेडागरक कर दिया
सारी खुशियों पर पानी फेर दिया
चिंता और डर के मारे
अपने कदम पीछे करने लगा
मगर दुःख कहाँ मानने वाला था
वह भी ढींठ था
लपकर सुख की गोद में जा बैठा
सुख चीखा, चिल्लाया-
अरे! मेरे पास ना आओ
दूर हो जाओ।
दुःख बोला-
रे ! मूर्ख
मेरे बिना तेरा क्या अस्तित्व?
अँधकार नहीं तो प्रकाश कहाँ से पाओगे?
दुख नहीं भोगेगे तो
सुख कहाँ से पाओगे?
याद रखना दुःख की भट्टी में
तपकर ही सोना निखरता है
वो जीवन ही क्या
जिसमें दुःख ना आए
स्वयं भगवान ने भी
वनों में रहकर दुख के दिन बिताए
तब जाकर वो श्रीराम कहलाए।
अब सुख भली-भाँति समझ चुका था
उसने हाथ बढ़ाकर
दुःख को गले लगाया
सच है- जैसे दीया-बाती है
वैसे दुःख भी तो सच्चा साथी है।
-०-
पता:
गिरधारी विजय अतुल
जयपुर (राजस्थान) 
-०-


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वक्त का इन्साफ (कविता) - सोनिया सैनी

वक्त का इन्साफ 
(कविता)
वक्त रूपी अदालत में
सिकंदर वहीं ......
जो वक्त को नाप तोल कर
चला सही.........

वरना अरमानों की लाशे
रोज बहा करती है
आलस्य रूपी दरिया में.....

निंद्रा रूपी आंधी में
ख्वाहिशों की धज्जियां भी
रोज उड़ा करती है......

चेतना शून्य प्राणी मूक दर्शक बन
स्तंब सा बैठा रहता है ,या
धकेल दिया जाता है, पीछे
बहुत पीछे..........

सजग, सचेत मनुष्य
बढ़ जाता है, अपने लक्ष्य रूपी
सागर की और,अविरल

यही है,यही है....
वक्त का इंसाफ
-०-
पता:
सोनिया सैनी
जयपुर (राजस्थान)

-०-


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कुछ कर गुजरने का (कविता) - प्रीति शर्मा 'असीम'

कुछ कर गुजरने का 
(कविता)
जिंदगी में कुछ कर गुजरने का सवाल आता है।
जब हमें हमारी ना-कामयाबी-यों का ख्याल आता है।

वक्त के सवाल पर, जब सवाल आता है।
वक्त आएगा ,हमारा भी यह ख्याल आता है।

जिंदगी में कुछ कर गुजरने का सवाल आता है।
हमारी काबिलियत पर उठी,
उन तमाम उंगलियों का ख्याल आता है।

हम भी इस मुकाम पर पहुंच गए ,
जब  यह सवाल आता है।
एक ठोकर से मिले ,
आसमान का ख्याल आता है।
-०-
पता:
प्रीति शर्मा 'असीम'
नालागढ़ (हिमाचल प्रदेश)

-०-


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घन बरसे (कविता) - विमल मेहरा


घन बरसे
(कविता)

घनन घनन गरजत घन बरसे ।
हरित-सुमित वन, वृक्ष, लताएँ,
पंछी थिरकेँ, कूँजें, गाएँ ।
साँझ रसीली भीगी सर से ।
चमन- चमन भर-भर घन बरसे।
घनन घनन गरजत घन बरसे ।

इंद्रधनुष उतरा नयनन में,
रही बिजुरिया कौंध गगग में।
नदिया करे मिलन सागर से।
सघन-सघन, पल-पल घन बरसे।
घनन घनन गरजत घन बरसे ।

नृत्य अनूठा वन-मयूर का,
गीत सुरीला मन-मयूर का।
सकल जगत आनंदित हरषे।
गगन-गगन तड़ -तड़ घन बरसे।
घनन घनन गरजत घन बरसे ।

झिरमिर-झिरमिर , रिमझिम-रिमझिम,
दिन पखवाड़े गिन-गिन, गिन-गिन,
सखि ! पियु के दरसन मन तरसे।
नयन-नयन भर-भर घन बरसे।
घनन घनन गरजत घन बरसे ।
पता:
विमल मेहरा 
जोधपुर (राजस्थान)

-०-


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