घन बरसे
घनन घनन गरजत घन बरसे ।
हरित-सुमित वन, वृक्ष, लताएँ,
पंछी थिरकेँ, कूँजें, गाएँ ।
साँझ रसीली भीगी सर से ।
चमन- चमन भर-भर घन बरसे।
घनन घनन गरजत घन बरसे ।
इंद्रधनुष उतरा नयनन में,
रही बिजुरिया कौंध गगग में।
नदिया करे मिलन सागर से।
सघन-सघन, पल-पल घन बरसे।
घनन घनन गरजत घन बरसे ।
नृत्य अनूठा वन-मयूर का,
गीत सुरीला मन-मयूर का।
सकल जगत आनंदित हरषे।
गगन-गगन तड़ -तड़ घन बरसे।
घनन घनन गरजत घन बरसे ।
झिरमिर-झिरमिर , रिमझिम-रिमझिम,
दिन पखवाड़े गिन-गिन, गिन-गिन,
सखि ! पियु के दरसन मन तरसे।
नयन-नयन भर-भर घन बरसे।
घनन घनन गरजत घन बरसे ।
पता:
विमल मेहरा
जोधपुर (राजस्थान)
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ReplyDeleteKya baat hai Vimal Mehra ji, Aati sunder
ReplyDeleteWah. Bahut sundar rachna hai Ghan Barse👌👌
ReplyDeleteBohot khoob Vimal ji! Maza aa Gaya Ghan Barse padhkar����
ReplyDeleteVimal ji apne varsharitu ka ati sunder varnan kiya hai.Ati uttam
ReplyDeleteMitti ki bheeni bheeni khushbu aa rahi hai aapki is rachna se Vimal ji. Bahut khoob!
ReplyDeleteAnand aa gaya Vimal ji ��
ReplyDeleteBahaut sundar kavita..man khush ho gaya
ReplyDeleteसावन के महीने का शब्दों से ऐसा चित्र बनाया है कि मन प्रसन्न हो गया
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लाजवाब
आदिल रशीद दिल्ली