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Friday, 24 July 2020

घन बरसे (कविता) - विमल मेहरा


घन बरसे
(कविता)

घनन घनन गरजत घन बरसे ।
हरित-सुमित वन, वृक्ष, लताएँ,
पंछी थिरकेँ, कूँजें, गाएँ ।
साँझ रसीली भीगी सर से ।
चमन- चमन भर-भर घन बरसे।
घनन घनन गरजत घन बरसे ।

इंद्रधनुष उतरा नयनन में,
रही बिजुरिया कौंध गगग में।
नदिया करे मिलन सागर से।
सघन-सघन, पल-पल घन बरसे।
घनन घनन गरजत घन बरसे ।

नृत्य अनूठा वन-मयूर का,
गीत सुरीला मन-मयूर का।
सकल जगत आनंदित हरषे।
गगन-गगन तड़ -तड़ घन बरसे।
घनन घनन गरजत घन बरसे ।

झिरमिर-झिरमिर , रिमझिम-रिमझिम,
दिन पखवाड़े गिन-गिन, गिन-गिन,
सखि ! पियु के दरसन मन तरसे।
नयन-नयन भर-भर घन बरसे।
घनन घनन गरजत घन बरसे ।
पता:
विमल मेहरा 
जोधपुर (राजस्थान)

-०-


***
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9 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

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  2. Kya baat hai Vimal Mehra ji, Aati sunder

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  3. Wah. Bahut sundar rachna hai Ghan Barse👌👌

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  4. Bohot khoob Vimal ji! Maza aa Gaya Ghan Barse padhkar����

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  5. Vimal ji apne varsharitu ka ati sunder varnan kiya hai.Ati uttam

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  6. Mitti ki bheeni bheeni khushbu aa rahi hai aapki is rachna se Vimal ji. Bahut khoob!

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  7. Anand aa gaya Vimal ji ��

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  8. Bahaut sundar kavita..man khush ho gaya

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  9. सावन के महीने का शब्दों से ऐसा चित्र बनाया है कि मन प्रसन्न हो गया
    बहुत ही सुन्दर लाजवाब
    आदिल रशीद दिल्ली

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