वक्त रूपी अदालत में
सिकंदर वहीं ......
जो वक्त को नाप तोल कर
चला सही.........
वरना अरमानों की लाशे
रोज बहा करती है
आलस्य रूपी दरिया में.....
निंद्रा रूपी आंधी में
ख्वाहिशों की धज्जियां भी
रोज उड़ा करती है......
चेतना शून्य प्राणी मूक दर्शक बन
स्तंब सा बैठा रहता है ,या
धकेल दिया जाता है, पीछे
बहुत पीछे..........
सजग, सचेत मनुष्य
बढ़ जाता है, अपने लक्ष्य रूपी
सागर की और,अविरल
यही है,यही है....
वक्त का इंसाफ
-०-
पता:
सोनिया सैनी
जयपुर (राजस्थान)
-०-
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