मेरे दिये
(कविता)
मिट्टी के भी दीपक लेलो बाबूजी।
मेरे घर भी दीवाली
है बाबूजी।
शाम ढले मैं भी कुछ
घर ले जाऊंगा।
दिल बच्चों का रह
जायेगा बाबूजी ।
त्यौहारों की रौनक
सिर्फ विदेशों में।
भारत में तो
राजनीति है बाबूजी।
डोकलाम तो
घड़ी-घड़ी चिल्लाते हो।
बंगले पर फिर चीनी
लडियाँ बाबूजी।
अपनापन-अपनत्व बहुत
ही मंहगा है।
तुम चीनी सामान उठा
लो बाबूजी।
हम लोगों की क्या
कोई दिवाली है?
दीपक भी है
खाली-खाली बाबूजी।
-०-
सुरजीत मान जलईया
सिंह
गांव - नगला नत्थू , पोस्ट
- नौगाँव , तहसील - सादाबाद , जिला -
हाथरस (उत्तर प्रदेश)
वर्त्तमान पता: दुलियाजान, असम.