तुमने जो दिए हैं जख्म
(कविता)
देखता हूं तुझको तो
फिर लेता हूं
अपनी निगाहें
कहीं पुरानी यादें
ताजा ना हो जाए
और
तुमने जो दिए हैं
जख्म
वह हरे ना हो जाए
तुमने जो किए हैं
प्यार में मुझ पर सितम
वह दिल में
अब तक
है दफन
तुमने जो दिया है
दर्द
उसे अब तक
हमने समेट रखा है
तुम्हारे दर्द,सितम,
जख्म और तुम्हारे प्यार
एक ही साथ रहता है
मेरे दिल में
देखता हूं
तुझको तो फेर लेता हूं
अपनी निगाहें।
-0-
संजय कुमार सुमन
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