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Sunday 3 November 2019

मेरे दिये (कविता) - सुरजीत मान जलईया सिंह


मेरे दिये
(कविता)
मिट्टी के भी दीपक लेलो बाबूजी।
मेरे घर भी दीवाली है बाबूजी।

शाम ढले मैं भी कुछ घर ले जाऊंगा।
दिल बच्चों का रह जायेगा बाबूजी ।

त्यौहारों की रौनक सिर्फ विदेशों में।
भारत में तो राजनीति है बाबूजी।

डोकलाम तो घड़ी-घड़ी चिल्लाते हो।
बंगले पर फिर चीनी लडियाँ बाबूजी।

अपनापन-अपनत्व बहुत ही मंहगा है।
तुम चीनी सामान उठा लो बाबूजी।

हम लोगों की क्या कोई दिवाली है?
दीपक भी है खाली-खाली बाबूजी।
-०-
सुरजीत मान जलईया सिंह
गांव - नगला नत्थू , पोस्ट - नौगाँव , तहसील - सादाबाद , जिला - हाथरस (उत्तर प्रदेश)
वर्त्तमान पता: दुलियाजान, असम.

-०-
***
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