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Wednesday, 2 September 2020

◆◆ सवेरा होगा ◆◆ (कविता) - अलका 'सोनी'

◆◆ सवेरा होगा ◆◆
(कविता)
गुनगुना रही थी कल तक
ज़िंदगी अपनी धुन पर
सज़ा हुआ था
हर तरफ खुशियों का
जैसे कोई मेला
खिलखिला रहा था बचपन
गलियों में बेफिकर सा

ये क्या आफत आयी
सहमा लग रहा है
हर मंज़र यहाँ अब
सूनी-वीरान दिख रही है
सपनों सी सुंदर दुनिया
थम गया है मानों
वक़्त भी यहाँ पर

एक बात याद रखना
समय थमता नहीं कभी भी
है आज रात काली
लेकिन सवेरा होगा
अमराइयों में चहकेगी
फिर कोई चिड़ियां

सूनी हुई सड़क पर
दौड़ेंगे ज़िंदगी के पहिये
जीतकर इस जंग को
चल पड़ेगी फिर से
अपनी सजीली दुनिया।
-०-
अलका 'सोनी'
बर्नपुर- मधुपुर (झारखंड)

-०-

***
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7 comments:

  1. यह कविता आज के संकटकाल में भी नवजीवन का उत्स और नई संजीवनी देने वाली है।

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  2. रचना को प्रकाशित करने के लिए आदरणीय संपादक द्वय का हार्दिक आभार .....💐💐

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  3. हार्दिक बधाई है सुन्दर रचना के लिये।

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति! उत्कृष्ट रचना के लिए बहुत बहुत बधाई

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  5. आप सभी का हृदय से आभार.....💐

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