◆◆ सवेरा होगा ◆◆
(कविता)
गुनगुना रही थी कल तक
ज़िंदगी अपनी धुन पर
सज़ा हुआ था
हर तरफ खुशियों का
जैसे कोई मेला
खिलखिला रहा था बचपन
गलियों में बेफिकर सा
ये क्या आफत आयी
सहमा लग रहा है
हर मंज़र यहाँ अब
सूनी-वीरान दिख रही है
सपनों सी सुंदर दुनिया
थम गया है मानों
वक़्त भी यहाँ पर
एक बात याद रखना
समय थमता नहीं कभी भी
है आज रात काली
लेकिन सवेरा होगा
अमराइयों में चहकेगी
फिर कोई चिड़ियां
सूनी हुई सड़क पर
दौड़ेंगे ज़िंदगी के पहिये
जीतकर इस जंग को
चल पड़ेगी फिर से
अपनी सजीली दुनिया।
बर्नपुर- मधुपुर (झारखंड)
-०-
ज़िंदगी अपनी धुन पर
सज़ा हुआ था
हर तरफ खुशियों का
जैसे कोई मेला
खिलखिला रहा था बचपन
गलियों में बेफिकर सा
ये क्या आफत आयी
सहमा लग रहा है
हर मंज़र यहाँ अब
सूनी-वीरान दिख रही है
सपनों सी सुंदर दुनिया
थम गया है मानों
वक़्त भी यहाँ पर
एक बात याद रखना
समय थमता नहीं कभी भी
है आज रात काली
लेकिन सवेरा होगा
अमराइयों में चहकेगी
फिर कोई चिड़ियां
सूनी हुई सड़क पर
दौड़ेंगे ज़िंदगी के पहिये
जीतकर इस जंग को
चल पड़ेगी फिर से
अपनी सजीली दुनिया।
-०-
अलका 'सोनी'बर्नपुर- मधुपुर (झारखंड)
-०-
यह कविता आज के संकटकाल में भी नवजीवन का उत्स और नई संजीवनी देने वाली है।
ReplyDeleteप्रणाम
Deleteरचना को प्रकाशित करने के लिए आदरणीय संपादक द्वय का हार्दिक आभार .....💐💐
ReplyDeleteहार्दिक बधाई है सुन्दर रचना के लिये।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति! उत्कृष्ट रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता|
ReplyDeleteआप सभी का हृदय से आभार.....💐
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