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Wednesday 2 September 2020

क्या इसको जीना कहते हैं (कविता) - रीना गोयल

क्या इसको जीना कहते हैं
(कविता)
भड़क रही सीने में पल- पल ,आग नफरतों की यह कैसी ।
दुखी हृदय सब देख विकल है ,क्या इसको जीना कहते हैं ।

भ्रष्ट हो गयी राजनीति है , भूल चुकी ईमान तभी ये,
क्यों विनाश की और चले हैं,भ्रमित हुए इंसान सभी यें ,
होली खेलें चलो रक्त से ,चौड़ा कर सीना कहते हैं ।।
दुखी हृदय सब देख विकल है ,क्या इसको जीना कहते हैं।।

चेहरे पर चेहरा रख घूमें,हैवानों की भीड़  बढ़ी अब,
अस्मत लुट जाए अबला की ,क्या जाने किस दुखद घड़ी रब ,
वस्त्रहीन कर जला जिस्म कर ,रसिक ज़रा पीना कहते हैं ।।
दुखी हृदय सब देख विकल है ,क्या इसको जीना कहते हैं।।

कैसी ये आजादी पायी ,क्या अब झूमूं नाचूँ गाऊं ,
जाति धर्म टकराव देखकर ,या रब जिंदा ही मर जाऊं ,
कदर गँवा दी वही देश जो गौरों से छीना कहतें हैं ।।
दुखी हृदय सब देख विकल है ,क्या इसको जीना कहते हैं।।
-०-
पता:
रीना गोयल
सरस्वती नगर (हरियाणा)




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