*** हिंदी प्रचार-प्रसार एवं सभी रचनाकर्मियों को समर्पित 'सृजन महोत्सव' चिट्ठे पर आप सभी हिंदी प्रेमियों का हार्दिक-हार्दिक स्वागत !!! संपादक:राजकुमार जैन'राजन'- 9828219919 और मच्छिंद्र भिसे- 9730491952 ***

Wednesday, 2 September 2020

आखिर वह कौन थी? (यात्रा वृत्तांत - भाग ३ ) - सूबेदार पाण्डेय 'आत्मानंद'

आखिर वह कौन थी?
(यात्रा वृत्तांत - भाग ३ )
क्रमशः २० मई २०२० से आगे ...
पूर्वावलोकन----अब तक आप लोगो ने पढ़ा कि किस प्रकार किन परिस्थितियों में मैंने माता रानी के तथा काल भैरव के दर्शन किया, परंतु मेरी यात्रा यही समाप्त नहीं हुई, परिस्थिति विशेष के कुछ और अनुभव होना बाकी था। 
अब मैं ज्यौं ज्यौं नीचे की तरफ बढ़ा जा रहा था, त्यों त्यों थकान पीड़ा तथा हताशा का शिकार हो चला था। मेरा आत्मबल हीन हो गया, मैंने परिस्थितियों के आगे घुटने टेक दिए पूर्ण रूप से विवशता मुझ पे हावी हो गई, न जाने क्यों मेरी अन्तरात्मा से ये आवाज आ रही थी कि अब मैं घर नहीं पहुंच पाऊंगा। मेरे पांव कमर घुटने में बुरी तरह जकड़न पैदा हो गई थी, एकएक कदम चलना दूभर हो चला था, नंगे पांव सुन्न हो नीले पड़ते जा रहे थे , इन परिस्थितियों में सिवा रेलिंग पकड़ रोने
के अलावा कोई चारा शेष नहीं बचा था क्यौ कि मेरा सहयात्री आगे निकल दूसरे पड़ाव पर मेरा इंतजार कर रहा था, और मैं यहां अकेला अपनी परिस्थितियों से जूझ रहा था। मेरा कोई मददगार उस बीरानेंमें नहीं दीख रहा था, मेंरे जीवन काल की सारी घटनाएं फिल्मी रील की तरह घूम रही थी, उस बेखुदी के आलम में आंखों में आंसू, और जुबां पे जय माता दी का नाम था, अक्सर ऐसाही होताहै जब प्राण संकट में हो अपने ईष्ट की याद आती है और हताश मना पुकार उठता है नाम और मिल जाता है सहारा, मेरी आंखें भय पीड़ा एवम् थकान से बंद थी। तभीएकआत्मीय संबोधन मधुर आवाज मेरे कर्ण पटल 
से टकराई थी, और वातावरण में एक अजीब सुगंध फैल गई मानो सैकड़ों आम्रमंजरिया एक साथ खिल उठी हो । 
#अंकल जी आप रो रहे हैं, आपको बहुत दर्द है, मेरे कंधों पे हाथ रखिये अभी नीचे उतार दूंगी। #
उस आवाज को सुनकर मैं चैतन्य हुआ था, और आंखें खुली तो सामने एक सोडली नव यौवना को अपनी तरफ करूणामय नेत्रों से तकते पाया था, उस समय मेरी श्रद्धा मेरा विश्वास मेरा भरोसा मूर्ति मान हो मेरे सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी, और मैं सम्मोहित हो उसे ही तक रहा था। उसकी स्नेहिल वाणी सुनकर भी मेरे मन में हाथ थामने अथवा कंधे का सहारा लेने की इच्छा नहीं जगी, अचानक मेरे मुह से बोल फूट पड़े जा बेटी तूं जिस भी कुल से हो ईश्वर तेरा कल्याण करे, तूं सदा सुखी रहे बेटी मैं धीरे धीरे खुद ही चला जाउंगा। 
मैं उठा और मेरा चोला चैतन्य हो उठा, मेरे कदम नीचे की तरफ़ बढ़ चले, वह मेरे पीछे कुछ सिढ़ियों तक आई थी, ज्योंही मैंने अपनी बाई तरफ देखा वह कन्या गायब थी, ऊपर से नीचे देखा तो लगा मैं नीचे आ गया हूँ। कुछ ही देर में उतर जाऊंगा, इतना सोंचते ही मेरे हृदय में साहस का संचार हुआ, धीरे धीरे चलते मैं कटरा आ पहुचा अपने मित्र के पास। आगे की यात्रा बस द्वारा जारी रखते हुए दिल्ली के रास्ते मथुरा पहुंचा था, लेकिन बस में बैठने के बाद अब भी मेरी स्मृति में वही घटना क्रम चल रहा था, मैं अब भी निर्णय नही ले पा रहा था कि वह मेरा भ्रम था या यथार्थ। आप भी विचार करें।
-०-
क्रमशः ........... २० जून २०२० (आखिर वह कौन थी? (यात्रा वृत्तांत - भाग ४ )
 -०-
पता:
सूबेदार पाण्डेय 'आत्मानंद'
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

-०-

***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

No comments:

Post a Comment

सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ