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Wednesday, 18 November 2020

दुमदार दोहे (दोहा) - सुनीता मिश्रा



दुमदार दोहे

(दोहा)

अमावस की रात रही, तारे लगते मीत
अँधेरे की हार हुई, गया उजाला जीत।।
खुशहाली हो चहुँओर,
नाचे छम छम भोर।।

अगले बरस आयेगा, खुशियों का त्योहार
सहालग फिर शुरु हुये, चलती जीवन धार।।
बजेगी अब शहनाई
द्वार पर दुलहिन आई।।

भारत भूमि की खातिर, वीर हुए बलिदान
उनके नाम का दीपक, ज्योतिमय दीपदान।।
अमर जवान,अमर देश
हो भारत का परिवेश।।

-०-
पता
सुनीता मिश्रा
कोलार, भोपाल (मध्यप्रदेश)

-०-



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मेरा बेटा (कविता) - सूर्य प्रताप राठौर

मेरा बेटा
(कविता)
मचल कर मेरा बेटा आ बैठा मेरे कंधे पर।
झूमा ऐसे मानो जमा आसन आसमान पर।।
पापा मैं तो आप से भी ऊँचाई पर आ गया।
कंधे पर बैठ कर ही सबसे ताकतवर हो गया।।
मेरे अंतर्मन में यूँ ही एक विचार पनप उठा।
बेटा यह तेरी नहीं शायद तेरे हृदय की है व्यथा।।
जब तक तू बैठा है मेरे इन बलिष्ठ कंधों पर।
महसूस करेगा तो खुद को इस धरा से ऊपर।।
किंतु जब तू इस धरातल की नींव पर आएगा।
बेटा तुझे हकीकत का अंदाजा यूँ ही हो जाएगा।।
खुद के पग पर खड़े होकर जब तू छू लेगा ऊँचाई।
नहीं रह पाएगी शायद यह प्रसन्नता तुझमें ही समाई।।
तात के कंधे तो होते ही हैं नभ के उमड़ते बादल।
जो छुपा कर रखते हैं मोती बूंदों के अपने अविरल।।
बाप का नाम ही अमूल्य धन है जीवन सुखी रहने को।
तपता दोपहरी फिर भी है छाँव बरगद-सा संतान को।।
जिस दिन यह साया हटेगा तेरे इस सुंदर सदन से। 
हट जाएगा ये स्नेह आवरण तेरे प्रफुल्लित जीवन से।।
-०-
सूर्य प्रताप राठौर
सांगली (महाराष्ट्र)

-०-



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हे मातृभूमि मेरी.....(कविता) - प्रशान्त कुमार 'पी.के.'

हे मातृभूमि मेरी.....
(कविता) 
हे मातृभूमि मेरी,
हे कर्मभूमि मेरी।
तू स्वर्ग से भी न्यारी,
हे जन्मभूमि मेरी।।

श्री राम, कृष्ण, गौतम,
की तू तपस्थली है।।
बचपन से वृद्धावस्था,
तेरे अंक में पली है।।
वात्सल्यता की छाया, 
इन पर पड़ी घनेरी।।

हे मातृभूमि मेरी...

तुलसी, कबीर मीरा,
भक्ति का प्रेम सागर।।
तुझमें ही प्रेमभाव की,
भर डाली मन की गागर।।
कर मन को भाव विह्वल,
रसखान छटा बिखेरी।।

हे मातृभूमि मेरी......

आजाद, भगत, राजगुरू,
तुझमें ही पले बढ़े थे।।
तेरी ही रक्षा खातिर,
दुश्मन से लड़ पड़े थे।।
तुझमें ही जन्म पाकर,
हैं तकदीर धन्य मेरी।।

हे मातृभूमि मेरी.....

तुझमें ही जड़ी बूटियां,
जीवन सशक्त करती।
तुझ पर हरियाली ऐ माँ,
सुहागिन सा श्रृंगार करती।।
जीवन सुमन चढ़ाकर,
करूँ वन्दना मैं तेरी।।
-०-
पता -
प्रशान्त कुमार 'पी.के.'
हरदोई (उत्तर प्रदेश)
-०-

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कुछ तो हो (कविता) - राजीव डोगरा 'विमल'


कुछ तो हो
(कविता)
जीत नही तो
हार ही सही,
सुख नहीं तो
दुख ही सही,
अपने नहीं तो
पराए ही सही,
दोस्ती नहीं तो
दुश्मनी ही सही,
जीवन नहीं तो
मृत्यु ही सही,
आदि नहीं तो
अंत ही सही,
हमसफर नहीं तो
हमराही ही सही,
धरती नहीं तो
आसमां ही सही
जल नहीं तो
अग्नि ही सही,
नव नहीं तो
पुरातन ही सही,
ज्ञान नहीं तो
अज्ञान ही सही।
-०-
राजीव डोगरा 'विमल'
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
-०-



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ऐ मेघ (कविता) - निधि शर्मा

   

 ऐ मेघ
(कविता)
ऐ मेघ!
जो तुम यूं उडे जा रहे हो,
जरा ये तो बताओ
कि कहां जाकर बरसने वाले हो ?

ऐ मेघ!
जरा ठहरो और
सुनो उसकी पुकार
जो कहलाते हैं अन्नदाता।

ऐ मेघ! गुजारिश है तुझसे
कि उम्मीद की किरण उन
आंखों को दिखा जो
अपनी लहराती फसल देखने को बेसब्र हैं ।

ऐ मेघ! विनती है तुझसे
कि बरसाओ अपनी कृपा
और करदो रोशन उस घर को
जो है सबके राशन का आधार।
-०-
पता:
निधि शर्मा
जयपुर (राजस्थान)


-०-


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