हे मातृभूमि मेरी.....
(कविता)
हे मातृभूमि मेरी,
हे कर्मभूमि मेरी।
तू स्वर्ग से भी न्यारी,
हे जन्मभूमि मेरी।।
श्री राम, कृष्ण, गौतम,
की तू तपस्थली है।।
बचपन से वृद्धावस्था,
तेरे अंक में पली है।।
वात्सल्यता की छाया,
इन पर पड़ी घनेरी।।
हे मातृभूमि मेरी...
तुलसी, कबीर मीरा,
भक्ति का प्रेम सागर।।
तुझमें ही प्रेमभाव की,
भर डाली मन की गागर।।
कर मन को भाव विह्वल,
रसखान छटा बिखेरी।।
हे मातृभूमि मेरी......
आजाद, भगत, राजगुरू,
तुझमें ही पले बढ़े थे।।
तेरी ही रक्षा खातिर,
दुश्मन से लड़ पड़े थे।।
तुझमें ही जन्म पाकर,
हैं तकदीर धन्य मेरी।।
हे मातृभूमि मेरी.....
तुझमें ही जड़ी बूटियां,
जीवन सशक्त करती।
तुझ पर हरियाली ऐ माँ,
सुहागिन सा श्रृंगार करती।।
जीवन सुमन चढ़ाकर,
करूँ वन्दना मैं तेरी।।
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