सेवा भाव
(कविता)
(कविता)
इस देश का सभ्य नागरिक कहते है लेकिन
सेवा भाव से कतराते है
जब दीन दुखियों और
पशु पक्षियों की सेवा की बात करतें है तो
लोग कहते है कि
यह तो मांगने का तरीका है
कोई गाय के नाम से
कोई मंदिर के नाम से
कोई वृध्दाआश्रम के नाम से तो
कोई दीन दुखियों की सेवा के नाम से
आये दिन मांगते ही रहते है
लेकिन हम कहते है कि
आप दीन दुखियों की सेवा करें
गायों की सेवा स्वंय कीजिए
अगर आप गऊशाला मे
दान पुण्य की रकम नहीं देना चाहते है तो
मत दीजिए लेकिन
अपने घर के बाहर
गायों को गर्मी से राहत दिलाने के लिए
पानी की कूंडी तो रख सकते हैं या
पानी से भरा एक टप तो रख सकते हैं
गाय को चारा तो डाल सकते हैं
जब हम अपने घर पर
आये मेहमान से चाय नाश्ते के लिए पूछते है तो
क्या इन मूक गायों के लिए
इतना भी नहीं कर सकतें
-०-
सुनील कुमार माथुरजोधपुर (राजस्थान)
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