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Monday, 30 March 2020

सेनानी (लघुकथा) - डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा

सेनानी
(लघुकथा)
"सेठजी, मेरे लिए सफेद रंग का पंद्रह मीटर और हल्का नीला रंग का पाँच मीटर कॉटन कपड़ा निकाल दीजिएगा।" रग्घू दर्जी ने कहा।
"क्या कर रहा है रग्घू इतना सूती कपड़ा ?" दो दिन पहले भी दस मीटर ले कर गया था।" सेठजी ने पूछा।
"मास्क बना रहा हूँ सेठजी। बहुत माँग है। कोरोना वायरस का कहर तो आप देख ही रहे हैं। अभी और बनाऊँगा।" रग्घू ने बताया।
"अरे वाह, तुम्हारी तो लॉटरी निकल गई। पाँच रुपए की लागत में डेढ़-दो सौ रुपये तक अंदर कर रहे हो।" सेठ जी ने आँख मारते हुए कहा।
"ऐसी कोई बात नहीं है सेठजी।" रग्घू ने कहा।
"मैं सब समझता हूँ रग्घू। चलो मैं तुम्हें एक जबरदस्त ऑफर देता हूँ। तुम जितना चाहे मेरी दुकान से कपड़े ले लो, और मास्क बनाओ और उसे मुझे ही बेच दो। मैं तुम्हें प्रत्येक मास्क का डेढ़ सौ रुपये दूँगा। बोलो मंजूर।" सेठ जी उत्साहपूर्वक बोले।
"माफ कीजिएगा सेठजी। मुझे ये सौदा मंजूर नहीं है। मैं ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता, जिसकी मंजूरी मेरी अंतरात्मा न दे।" रग्घू ने हाथ जोड़ दिए।
"लगता है तू पगला गया है। ऐसे तो तू जिंदगी भर गरीब के गरीब ही रहेगा।" सेठ जी ने उसे ललचाया।
"आप कुछ भी समझ सकते हैं सेठ जी। मैं अपना सिद्धांत नहीं बदर सकता। आज देशवासियों की सेवा का अवसर मिला है तो पीछे नहीं हटूँगा। कोरोना वायरस के विरुद्ध जारी संघर्ष में मेरा पूरा परिवार अपने स्तर पर लगा हुआ है। हम पति-पत्नी लगातार मास्क बना रहे हैं, और हमारे दोनों बच्चे मात्र दस रुपए प्रति मास्क की दर पर बेच रहे हैं, जबकि कुछ लोग बाजार में यह डेढ़ से दो सौ रुपए में भी बेच रहे हैं। और हाँ, हम एक ग्राहक को अधिकतम दो ही बेचते हैं।" रग्घू ने बताया।
"तभी तो कह रहा हूँ कि तुम ही नहीं, तुम्हारा पूरा परिवार पगला गया है।" सेठ जी ने खिसियानी आवाज में कहा।
"सेठ जी, जब महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे लोग अपने सारे ऐश ओ आराम छोड़कर देश की सेवा का संकल्प लिए, तब लोगों ने उन्हें भी पागल ही समझा था। पर आज.... कोरोना के विरुद्ध संघर्ष में सिर्फ डॉक्टर और सरकार की भागीदारी जरूरी नहीं, हम सबकी भागीदारी जरूरी है। यहाँ हम सबको सेनानी बनना होगा, जब हम सभी अपने-अपने स्तर पर इस लड़ाई में भागीदारी करेंगे, तभी इसे परास्त कर सकेंगे। वरना..." रग्घू अपनी ही रौ में बोलता चला गया।
"मुझे माफ कर दो रग्घू भाई। मैं कुछ देर के लिए स्वार्थी हो गया था। तुम्हारी बातों ने मेरी आँखें खोल दी है भाई। आज जब हमें अपने देश और देशवासियों की सेवा का अवसर मिला है तो पीछे नहीं हटना चाहिए। मैं भी तुम्हारे इस मिशन में सहयोग करना चाहता हूँ। तुम्हें जितना चाहे, सूती कपड़ा मेरी दुकान से लो। मैं तुम्हें खरीदी मूल्य पर ही दूँगा, और अगर तुम चाहो तो तैयार मास्क मेरी दुकान में बेच सकते हो। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि उन्हें निर्धारित कीमत पर ही बेचूँगा। यही नहीं आज से बल्कि अभी से मेरे यहाँ काम करने वाले दोनों दर्जी प्रतिदिन कम से कम 50-50 मास्क सिलेंगे, जिन्हें मैं शाम को मंदिर के पास खड़े होकर जरूरतमंद लोगों को मुफ्त में बाँटूँगा।" सेठ जी प्रफुल्लित मन से बोले।
"वाह ! ये तो बहुत ही उत्तम विचार है सेठ जी। कोरोना के विरुद्ध हम सब मिलकर लड़ेंगे, तभी कामयाबी हासिल होगी।" रग्घू ने सेठ जी की ओर प्रशंसा भरी नजरों से देखते हुए कहा।
"हारना तो हम भारतीय नहीं जानते। जीतेंगे तो हमीं रग्घू। चलो अभी से मिशन पर लग जाते हैं।" सेठ जी अपने दोनों दर्जियों को बुलाकर आगे की रणनीति समझाने लगे।
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पता: 
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर (छत्तीसगढ़)

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