वह है कौन
(कविता)
वो पंछियों के साथ जागकर
ज़िद्दी मवेशियों को खींचती है,
चिलचिलाती धूप में अपनी
सुनहरी उम्मीदें बोती है,
हाड़ जमाती रातों में
खेतों में रखवाली करती
जागती आँखों में
अपने सपने सींचती है।
वह कड़कते मौसम में
अपनी रोटी काटती है
और पुरज़ोर बचाती है
उसे बेरहम मौसम की मार से ।
एक-डेढ़ मन के गट्ठर को
सिर रखवाने की बाट जोहती है।
एक बेटे की आस में
तीन-चार बेटियों के बाद भी
एक-दो को दुनिया में
आने से रोकती है।
प्रसव पीड़ा को भाग्य मानकर
निश्छल मुस्कुरान बिखेरती है।
ऐसा क्या है...
जो वो नहीं करती है ?
वो अपने घर का राजा है,
सो...बस आराम ही करता है।
गाँव के हर घर की
बहू-बेटियों को घूँघट
में भी खूब पहचानता है।
उनके कहाँ-कब आने-जाने का
पूरा हिसाब जानता है।
वह गाँव के चौपाल की
पान की दुकान की शान है,
और ताश के पत्तों की जान है।
क्यों न हो पुरख़ों की ज़मीनों का
आख़िर झूठा अभिमान है।
ऐसा क्या है....
जो वो करता है ?
तैयार फसलों को बस
बाहर बेच आता है
नफ़ा हो तो भी
नुकसान बताता है।
पुरुष जो ठहरा....
'मालिक' तो वो ही कहलाता है।
-०-
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