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Monday 4 November 2019

तलाशते रहिए (गज़ल) - विष्णु देवी तिवारी 'उषा तिवारी' (नेपाल)


तलाशते रहिए
(गज़ल)   
कहीं दरख़्त कहीं घर तलाशते रहिए ।
हवा के रंग का मंज़र तलाशते रहिए ।

यक़ीन हो न हो लेकिन यही मुनासिब है
हरेक मोड़ पे रहबर तलाशते रहिए ।

हमें शिकस्त न देगी समय की ये उलझन
दिलों में फ़िक्र के पत्थर तलाशते रहिए ।

तमाम राह दिखाई न दे जो क़ातिल तो
उसी के हाथ में खंज़र तलाशते रहिए ।

जहाँ तलक भी ये सहरा दिखाई देता है
कदम कदम पे समुन्दर तलाशते रहिए ।
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विष्णु देवी तिवारी 'उषा तिवारी' (नेपाल)
भरतपुर-३, नारायाणगढ, चितवन (नेपाल)





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कृष्णाष्टक सवैया (पद) - नीलम सिंह


कृष्णाष्टक
(पद्य-सवैया)
(1)
चन्द्र सुआनन कानन कुण्डल कुन्तल राशि लुभाय रहे हैं।
जेवत जात गिरावत माखन आनन सों लिपटाय रहे हैं।
मन्द मनोहर हास युँ सोहत तीनहुँ लोक रिझाय रहे हैं।
बालक रूप धरे जगपालक नन्द जु आँगन धाय रहे हैं।।

(2)
केसर भाल सुशोभित,मोहक कण्ठन माल सजाय रहे हैं।
मोह रही अधराधर की छवि मानहुँ कुंज रिझाय रहे हैं।
सोहत हैं मकराकृत कुण्डल,लोचन मीन लजाय रहे हैं।
बालक रूप धरे जगपालक नन्द जु आँगन धाय रहे हैं।

(3)
शोभित रत्नजड़ी मुरली,हरि राधहिं आजु सताय रहे हैं।
पैंजनिया छनकी प्रभु के पग,मानहुँ नाद गुँजाय रहे हैं।
ज्योतित आभ छवी मनमोहक मातु हिया हरषाय रहे हैं।
बालक रूप धरे जगपालक नन्द जु आँगन धाय रहे हैं।।

(4)
फोरि दयी मटकी दधि की बृजबालन नाथ खिझाय रहे हैं।
बाल गुपाल चले सब भागत छाँव कदम्ब जुड़ाय रहे हैं।
सृष्टि विमोहित रूप विलोकत बैठ हरी मुसकाय रहे हैं।
बालक रूप धरे जगपालक नन्द जु आँगन धाय रहे हैं।।

(5)
कन्दुक जाय गिरी जमुना जल दम्भ प्रभंजक जाय रहे हैं।
रोवत-रोवत ग्राम जु वासिन देवन साथ मनाय रहे हैं।
शाप विमुक्त करे जब माधव कालिय मस्तक नाय रहे हैं।
बालक रूप धरे जगपालक नन्द जु आँगन धाय रहे हैं।।

(6)
इन्द्र सकोप डटे ,घन बरसे,सों गिरिराज उठाय रहे हैं।
विस्मित देखि रहे सुर भूप अचंभित हो सकुचाय रहे हैं।
स्वर्ग तजे सब देव विलोकत भक्ति सुधा बरसाय रहे हैं।
बालक रूप धरे जगपालक नन्द जु आँगन धाय रहे हैं।।

(7)
चीर उठाय चढ़े तरु ऊपर ,गोपिन ज्ञान सिखाय रहे हैं।
प्रेम वशी निधि के वन मोहन अद्भुत रास रचाय रहे हैं।
गोपिन के मन प्राण बसे,सुदुलार सखा नित पाय रहे हैं।
बालक रूप धरे जगपालक नन्द जु आँगन धाय रहे हैं।।

(8)
आनन खोल दिखावत मातहिं काल गति समुझाय रहे हैं।
शीश झुकावत शम्भु,दिवाकर,योगिन ध्यान लगाय रहे हैं।
वेद-पुराण स्वरूप बखानत महिमा गाय अघाय रहे हैं।
बालक रूप धरे जगपालक नन्द जु आँगन धाय रहे हैं।।
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नीलम सिंह

139,खलील शर्की , तीन खम्बागली , शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश )

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मदद (लघुकथा) - डॉ० भावना कुँअर, सिडनी (ऑस्ट्रेलिया )

मदद
(लघुकथा)
राहुल सड़क पर बेहोशी की अवस्था में पड़ा था,हैलमेट का चूरा-चूरा हो गया था, स्कूटर दूर कहीं छितरा पड़ा था। शायद कोई टक्कर मारकर चला गया था। पुष्पिता का मन आज सुबह से ही बहुत खबरा रहा था।उसने पति को फ़ोन किया। फ़ोन किसी अजनबी ने उठाया तब ये सारा हाल पुष्पिता को पता चला। भला इंसान था कोई, जो मदद कर रहा था, पुष्पिता के लिए वो किसी फरिश्ते से कम नहीं था। पुष्पिता ने उसको वहीं रुके रहने की प्रार्थना की और राहुल के बॉस को फ़ोन पर सब बातें बता दीं। आँसुओं का बाँध नहीं रुक रहा था, पर संयम बनाए हुए थी।राहुल दिल्ली अपने बॉस से ही मिलने जा रहा था। बॉस तुरंत गाड़ी लेकर आए और राहुल को अपने साथ ले गये। वह फरिश्ता तब तक वहीं रुका रहा। हजारों दुआएँ दे डाली थी पुष्पिता ने; वरना आजकल कौन झंझट में पड़ता है पुलिस आदि के।
सालभर पहला यह चित्र राहुल की आँखों के सामने ताज़ा हो उठा।
सामने पलटी हुई गाड़ी को देखा। भीड़ अब भी तमाशबीन बनी खड़ी थी। लोग अनदेखा करके चले जा रहे थे।उसे एयरपोर्ट जाना था। मुम्बई में बहुत ज़रूरी ऑफ़शियल मीटिंग थी। घड़ी देखी-अगर वह यहाँ 10-15 मिनट भी रुकता है; तो फ़्लाईट छूटने का डर है। वह गाड़ी से उतरा। उसने एक-एक कर सभी को गाड़ी से बाहर निकाला।पूरा परिवार था साथ में,माँ-बाप,बच्चे।राहुल ने सबको अपनी कार में बिठाया।कोई खून से लथपथ था,तो किसी की हड्डी टूटी लगती थी।हॉस्पिटल में भर्ती कराया और तब तक रुका,जब तक कि सबके सुरक्षित होने का आश्वासन डॉक्टर से नहीं मिल गया।उनके परिवार के रिश्तेदारों को फ़ोन करके ख़बर कर दी। फ़्लाईट का समय निकल गया था। हैड ऑफ़िस से लताड़ तो पड़ेगी ही,यह सोचकर भी उसके होठों पर सुकून भरी मुस्कान बिखर गई।
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डॉ० भावना कुँअर 

ऑस्ट्रेलिया (सिडनी)

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किन्तु परन्तु (आलेख) - श्रीमती प्रभा पारीक

किन्तु-परन्तु
(आलेख)
नाच मेरी जान हो के मगन तु,छोड के सारे किन्तु परन्तु,
जी ले मेरी जान हो के मगन तु,छोड के सारे किन्तु परन्तु

मैं नाचुं किसी को क्या? मै हँसु किसी को क्या ....पर वास्तव में ऐसा नहीं है। हमें हमसे कम और दूसरों से सरोकार अधिक होता है।

नाचे तो क्यों नाचे?, नहीं नाचे तो क्यों नहीं नाचे?, यहाँ क्यों वहाँ क्यों नहीं ऐसे क्यों वैसे क्यों नहीं ,कम ही ज्यादा क्यों नहीं नाचना आता है तो भी क्यों नहीं नाचते हो ?,क्या ये उम्र है? समय है? नाचने का आदि आदि|

साहेबान यह युग मुल्ला नसीरूद्दिन का नहीं रहा है। जिसमें क्यूं, क्या से परेशान हो कर मुल्ला नसीरूदिद्न मूक जानवर, अपने प्रिय गधें को कुए में फेकने का मजबूर हो गये और न ये शिव पार्वती के पृथ्वी भ्रमण का युग है जिसमें अपने नन्दी बैल पर भ्रमण करते हुये किन्तु परंन्तुसे परेशान हो कर भगवान शिव ने पार्वती जी के साथ पृथ्वी भ्रमण को विराम दिया और मानव प्रवृति को स्वीकार करते हुये पुनः कैलाश लौट गये। ये आधुनिक युग है साहेबान, जिसमें अब किन्तु- परन्तुका कोई स्थान नहीं है आगे बढने के लिये सभी किन्तु-परन्तुको छोड़ कर ही आगे बढ़ना होगा।

मैं सुबह जल्दी उठूं या देर से, यह मेरी मर्जी है लोगों की नजर में अच्छी या बुरी क्यों हो जाऊँ ? मुझे क्या पसंद है क्या ना पसंद इसके साथ यदि मैं आगे बढ़ती जाऊँ तो किसी को क्या तकलीफ हो सकती है। जब तक हमारा व्यवहार सामाजिक नियमों, मानकों का उल्लंघन नहीं करता तब तक हमें किसी भी किन्तु-परंन्तु पर ध्यान देना आवश्यक नहीं है। आप भी जानते है जितने भी सफल व्यक्ति हुये है उन्होंने अपनी सफलता की प्रेरणा स्वयं से ली है क्यों कि उन्होंने केवल और केवल अपने मन की सुनी थी। इसलिये अपनी सफलता-असफता का निर्णय आप न करें बस प्रयास करते जायें । गुजराती गायक का एक लोकप्रिय गीत याद आता ’’हे राज मने लाग्यो कुसंबी नो रंगमुझे केसरिया रंग लगा है, इस कसूंबल रंग को किसी ने देश प्रेम से लिया, किसीने बहादुरी से लिया और किसी ने मस्ती से लिया पर जिसने भी इसे जिस भी रूप में लिया और अपनाया, उसने अपना जीवन भरपूर जिया।

अपने सपनों को पूरा करने के लिये आप जितना ज्यादा जोखिम उठाते हैं असफलता का भी आपको उतना ही ज्यादा मुकाबला करना पडता है विश्वस्तरीय लोग जिन पथ्थरों से ठोकर खाते थे उन्हें ही अपनी उन्नती के सोपान बना लेते थे वे अपनी असफलता का प्रयोग स्वयं को सफलता के करीब ले जाने के लिये करते हैं। समस्याओं पर नहीं संभावनाओं पर ध्यान केन्द्रित करते हैं।

वास्तव में देखा जाये तो सभ्यता ने जीवन को उन्माद में भर दिया है मन मरजी करने की चाहत में मानव असहाय-सा अपनी शक्ति के दम्भ में प्रदर्शन करता रहता है और अन्जान है कि वह कहाँ जा रहा है, क्यूं जा रहा है? इसलिये मगन होकर नाचने के लिये विवके का दामन न छोड़े किन्तु परन्तुपर थमना नहीं है पर रूककर एक बार विचार करना जरूरी है। 

इस सभ्यता ने सबसे बड़ा अकल्याण यह किया हे कि उसने हम मनुष्यों को अचेत सा कर दिया है और मानव में निहित असीम दैवीय संभावनाओं को दबा दिया है। आज हम प्रत्येक क्षण को रूपैय की कसौटी पर तोलते हैं। प्रत्येक मनुष्य की यह इच्छा रहती है कि वह दुखः से छूटकर सुख प्राप्त करे , इसके लिये समस्त संसार के मनुष्य रात -दिन प्रयत्न करते रहते हैं जबकी दुखः और सुख बाह्ररी परिस्थितियां नहीं मनःस्थिती हैं। 

आप मगन होकर नाचने के लिये साहस शक्ति जुटा सकते हैं। वह करने के लिये जो आप सही समझते हैं यह गलत भी हो सकता है लेकिन आप जब तक उसे कर चुके होंगे। इसलिये अहम है कि हम अपनी बुद्वि से श्रेष्ठ चुनें और उसके अन्तिम मुल्यांकन का फैसला ईश्वर अथवा समय पर छोड दें। 

मनुष्य का व्यवहार बहुत कुछ हमारी चित्रकारी की कला जैसा है। मनुष्यों की आँख का कोण बदलते ही सारा द्रष्य बदल जाता है। यह बदलाव विषय पर नहीं वरन देखने वाले की नजर पर निर्भर करता है मनुष्य अपने जीवन से क्या चाहता है सबसे पहले वह चाहता है कि वह सूखी रहे। यह भी चाहता है कि वह समृद्ध रहे और जो भी काम करे उसमें सफलता प्राप्त हो। मानवीय दिमाग दो तरह से ही सोच सकता है छाया और रोशनी, मीठा-खटटा,अच्छा-बुरा। हमारे जीवनशैली व प्रकृति में इन दौनों का अस्तित्व एक भ्रम है। दुनिया में अच्छाई है ना बुराई केवल होना और करना है क्यों की आदमी या तो किसी कला की रचना कर सकता है या उसको देख कर बात कर सकता है। इसलिये मेरी जान नाच होकर मगन तू पर विवके को साथ रख तु तभी नाचने लायक रहेगा और किन्तु- परन्तु का सामना भी कम से कम करना पड़ेगा।
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श्रीमती प्रभा पारीक
श्रीमान शरद पारीक(पुत्र), प्रभा पारीक,704 ओबेराई एसक्रायरओबेराय वुड़ के सामने , मोहन गोखले मार्गओबेराय गार्डन सिटीगोरेगांव ईस्अ मुम्बई 

प्रभा पारीक 5 पंचवटी सोसायटीदहेज बाई पास लिंक रोड़ ,भरूच 

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दिया (कविता) - राजेश सिंह


दिया 
(कविता)
घने अन्धकार में
टिमटिमाता दिया
कहता है धुप्प अंधेरे से
भले ही तुम कब्जा किये
दिखते हो हर तरफ
पर हार ही जाते हो
मुझ जैसे
छोटे दिये के प्रकाश से
यह एक संकेत है
मिथ्या कितनी भी
विजयी दिखती हो
पर हार ही जायेगी
सत्य के प्रकाश से
और हां
सत्य के साथ
खड़े होने के लिए
खुद को दिये सा
जलाना पडता है
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राजेश सिंह
B-701, स्वाति फ्लोरेंस

निकट सो बो सेंटर
साउथ बोपलअहमदाबाद
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